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________________ (३४८) मूलविणट्ठा ण सिज्यंति । १० सम्यक्त्व रूप मूल के नष्ट हो जाने पर मोक्ष रूप फल की प्राप्ति नहीं होती। (३४९) सोवाणं पढम मोक्खस्स । २१ सम्यग्दर्शन ( सम्यक् श्रद्धा) मोक्ष की पहली सीढ़ी है। (३५०) णाणं णरस्स सारो । ३१ ज्ञान मनुष्य जीवन का सार है। बागम साहित्य के सुभाषित ६७३ सूत्रपाहुड (३५१) हेयाहेयं च तहा, जो जाणाइ सो हु सद्दिट्ठी । ५ जो हेय और उपादेय को जानता है, वही वास्तव में सम्यगृष्टि है । बोधपाहुड (३५२ ) जं देइ दिवख सिक्खा, कम्मक्खयकारेण सुद्धा । १६ आचार्य वह है जो कर्म को क्षय करने वाली शुद्ध दीक्षा और शुद्ध शिक्षा देता है। (३५३) धम्मो दयाविसुद्धो । २५ जिसमें दया की पवित्रता है, वही धर्म है । भावपाड ( ३५४) भावरहिओ न सिज्झइ । ४ भाव ( भावना) से शून्य मनुष्य कभी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता । ( ३५५) अप्पा अप्पम्मि रओ, सम्माइट्ठी हवेइ फुडु जीवो । ३१ जो आत्मा, आत्मा में लीन है, वही वस्तुतः सम्यग्दृष्टि है । मोक्षपाहुड (३५६) दुक्खे णज्जइ अप्पा । ६५ आत्मा बड़ी कठिनता से जाना जाता है ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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