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________________ आगम साहित्य के सुभाषित. महापुरुषों की वाणी में अद्भुत शक्ति व सामर्थ्य होता है । वे जिस विषय को स्पर्श करते हैं उसके तल तक पहुँचते हैं और विषय का ऐसा विश्लेषण करते हैं कि श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। उनके उपदेश प्रदान करने की छटा निराली होती है जिसमें गहन अनुभूतियों की छलनी में से छना हुआ वह सारतत्व होता है जिसमें कुछ भी अंश फेंकने जैसा नहीं होता। सीमित शब्दों में असीम अर्थ- गरिमा लिये हुए उनके विचार होते । सम्पूर्ण आगम साहित्य में श्रमण भगवान महावीर के विमल- विचारों का आलोक सर्वत्र जगमगा रहा है जो देश, काल और परिस्थितियों के संकीर्ण घेरे में आबद्ध नहीं है। उस विराट् आगम व व्याख्या साहित्य में से कुछ सुगन्धित सुमन यहाँ पर प्रस्तुत हैं, जिनकी सुमधुर सौरभ जन-जन के मन को प्रमुदित करने में सक्षम है :-- आगम साहित्य आचारांग (१) (२) (३) अस्थि मे आया उववाइए..... से आयावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी । ११२ यह मेरी बात्मा औपपातिक है, कर्मानुसार पुनर्जन्म ग्रहण करती है.... आत्मा के great सिद्धान्त को स्वीकार करने वाला ही वस्तुतः आत्मबादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है। एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए ॥ ११११२ यह आरम्भ (हिंसा) ही वस्तुतः ग्रन्थ-बन्धन है, यही मोह है, यही मारमृत्यु है, और यही नरक है । जे पत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे त्ति पयुच्चति । ११११४. जो प्रमत्त है, विषयासक्त है, वह निश्चय ही जीवों को दण्ड (पीड़ा) देने वाला होता है ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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