________________
तुलनात्मक अध्ययन
६१५
(२) देव सुगत (३) मनुष्य सुगत' । अंगुत्तरनिकाय में भी राग-द्वेष और मोह को नष्ट करने वाले को सुगत कहा है ।
स्थानांग में लिखा है कि पाँच कारणों से जीव दुर्गति में जाता है । ये कारण हैं- हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह । अंगुत्तरनिकाय में नरक जाने के कारणों पर चिन्तन करते हुए लिखा हैअकुशल काय कर्म, अकुशल वाक् कर्म, अकुशल मन कर्न और सावद्य आदि कर्म* नरक के कारण हैं ।
श्रमणोपासक के लिये उपासकदशांग सूत्र और अन्य आगमों में सावध व्यापार का निषेध किया गया है तथा उन्हें पन्द्रह कर्मादान के अन्तर्गत स्थान दिया गया है तो बौद्ध साहित्य में भी सावद्य व्यापार का निषेध है । वहाँ भी कहा गया है शस्त्र वाणिज्य, जीव का व्यापार, मांस का व्यापार, मद्य का व्यापार और विष व्यापार नहीं करने चाहिए।
स्थानाङ्ग व अन्य आगम साहित्य में श्रमण निग्रं न्थ इन छह कारणों से आहार ग्रहण करता है - ( १ ) क्षुधा की उपशान्ति, (२) वैयावृत्य के लिए, (३) इर्याविशुद्धि के लिए, (४) संयम के लिए, (५) प्राण धारण करने के लिए और (६) धर्मचिन्ता के लिए। अंगुत्तरनिकाय में आनन्द ने एक श्रमणी को इसी प्रकार का उपदेश दिया है। "
स्थानाङ्ग में इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकस्मात भय, वेदना भय, मरण भय और अश्लोक भय आदि सात भयस्थान बताये हैं तो अंगुत्तरनिकाय में भी जाति, जन्म, जरा, व्याधि, मरण, अग्नि, उदक, राज, चोर आत्मानुवाद - अपने दुश्चरित्र का विचार कि दूसरे मुझे
१ स्थानाङ्ग १८१
२ अंगुत्तरनिकाय ३।७२
३ स्थानांग ३६१
४ अंगुत्तरनिकाय ३३७२
५ अंगुत्तरनिकाय ३३१४१, १५३
६ अंगुत्तरनिकाय ५।१७८
e
स्थानांग ५००
८ अंगुत्तरनिकाय - ४१५६
€
स्थानांग ५४६
१० अंगुत्तरनिकाय ४।११६, ५७७