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________________ ६०६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा वैदिक संस्कृति से उद्भूत नहीं है। यह प्रारम्भ से ही एक स्वतन्त्र धारा रही है। हमारी दृष्टि से वैदिक और श्रमण धाराओं में जन्य-जनक के पौर्वापर्य की अन्वेषणा करने की अपेक्षा उनके स्वतंत्र अस्तित्व और विकास की अन्वेषणा करना अधिक लाभप्रद है। __ वैदिक संस्कृति का साहित्य बहुत ही विशाल है। वेद, उपनिषद्, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, भागवत, मनुस्मृति आदि के रूप में शताधिक ग्रन्थ हैं और हजारों विषयों पर चर्चाएं की गई हैं। भाषा की दृष्टि से यह संपूर्ण साहित्य संस्कृत में निर्मित है। जैन आगम साहित्य में आये हुए एक-एक विषय या गाथाओं की तुलना यदि सम्पूर्ण वैदिक साहित्य के साथ की जाय तो एक बिराट्काय ग्रंथ तैयार हो सकता है पर यहाँ हम बहुत ही संक्षेप में कुछ प्रमुख बातों पर ही चिन्तन करेंगे। यह सत्य है कि बौद्ध और जैन संस्कृति ये दोनों ही श्रमण संस्कृति की ही धाराएँ हैं। तथागत बुद्ध, बौद्ध संकृति के आद्य संस्थापक थे, तो जैन संस्कृति के आद्य संस्थापक भगवान ऋषभदेव थे जो जैनदष्टि से प्रथम तीर्थकर थे। भगवान महावीर उन्हीं तीर्थंकरों की परम्परा में चौबीसवें तीर्थकर थे। तथागत बुद्ध और तीर्थंकर महावीर ये दोनों एक ही समय में उत्पन्न हुए और दोनों का प्रचार-स्थल बिहार रहा। दोनों मानवतावादी धर्म थे। दोनों ने ही जातिवाद को महत्त्व न देकर आंतरिक विशुद्धि पर बल दिया। भगवान महावीर के पावन-प्रवचन गणिपिटक (जैन आगम) के रूप में विश्रुत हैं तो बुद्ध के प्रवचनों का संकलन त्रिपिटक (बौखागम) के रूप में प्रसिद्ध है। दोनों ही परम्पराओं में शास्त्र के अर्थ में 'पिटक' शब्द व्यवहृत हुआ है। वह ज्ञान-मंजूषा गणि अर्थात् आचार्यों के लिए थी। इसीलिए वह गणिपिटक के नाम से प्रसिद्ध हुई । यद्यपि 'गणि' शब्द जैन परम्परा में अनेक स्थलों पर व्यवहृत हुआ है तो बौद्ध-परम्परा के संयुक्तनिकाय, दीघनिकाय सुत्तनिकाय आदि में भी उसका प्रयोग प्राप्त होता है। दोनों ही परम्पराओं का जब हम तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करते हैं तो स्पष्ट परिज्ञात होता है कि दोनों ही परम्पराओं में विषय, शब्दों, उक्तियों एवं कथानकों की दृष्टि से अत्यधिक साम्य है। इस साम्य का मूल आधार यह हो सकता है कि कभी ये दोनों परम्पराएँ एक रही हों और उन दोनों का मूल स्रोत एक ही स्थल से प्रवाहित हुआ हो। आगम और त्रिपिटक साहित्य के एक-एक विषय को लेकर यदि तुलनात्मक अध्ययन
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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