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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५८७
आदि विषयों का विश्लेषण है। श्रुतभक्ति में ११ गाथाओं के द्वारा श्रुतज्ञान का स्वरूप बताकर उसकी स्तुति की गई है। चारित्रभक्ति में दस अनुष्टुप छन्दों द्वारा पाँच चारित्रों का वर्णन है। योगीभक्ति में २३ गाथाओं के माध्यम से योगियों की अनेक अवस्थाओं का चित्रण है। आचार्यभक्ति में दस गाथाओं के द्वारा आचार्य का विश्लेषण है। निर्वाणभक्ति में २७ गाथाओं के द्वारा निर्वाण का स्वरूप और निर्वाण को प्राप्त होने वाले तीर्थंकर भगवान की स्तुति की गई है। पंचगुरुभक्ति में सात पद्यों में पंचपरमेष्ठी की स्तुति की गई है और कोस्सामीथुदि में आठ गाथाओं से तीर्थंकरों की स्तुति की गई है।
कितने ही विद्वान कुन्दकुन्दाचार्य के ८४ पाहुड मानते हैं पर वे सभी वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। कुन्दकुन्द दिगम्बर परम्परा के महान प्रभावक आचार्य हुए हैं ।
कुन्दकुन्द की जैन दर्शन को देन
उपलब्ध साहित्य के आधार से कहा जा सकता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने आगमिक पदार्थों की दार्शनिक दृष्टि से सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में तार्किक चर्चा की। तात्कालिक दार्शनिक विचारधाराओं के आलोक में आगम तत्त्वों को स्पष्ट किया और अन्य दर्शनों के मन्तव्यों का निरसन करके जैन मन्तव्यों की निर्दोषता और उपादेयता का प्रतिपादन किया ।
श्वेताम्बर आगमों में वस्त्र धारण, केवली कवल आहार, स्त्री-मुक्ति, आदि अनेक ऐसे उल्लेख थे जो दिगम्बर परम्परा के अनुकूल न थे । अतः आचार्य कुन्दकुन्द ने दिगम्बर परम्परा की आध्यात्मिक भूख को शान्त करने हेतु अनेक ग्रन्थों का प्राकृत भाषा में प्रणयन किया। उनके ग्रन्थों में ज्ञान, दर्शन और चारित्र का निरूपण प्राचीन आगमिक शैली में और आगमिक भाषा में विविध प्रकार से किया गया है। उन्हें एक-एक विषय पर विश्लेषण करने वाले स्वतन्त्र ग्रंथ बनाना अभिप्रेत था और साथ ही सम्पूर्ण विषयों की संक्षिप्त जानकारी देना भी अभीष्ट था, और उन्हें यह भी अभिप्रेत था कि आगम के मुख्य विषयों का यथाशक्य तत्कालीन दार्शनिक प्रकाश में निरूपण किया जाय जिससे जिज्ञासुओं को श्रद्धा एवं बुद्धि की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो सके ।
आचार्य कुन्दकुन्द के समय अद्वैतवादों का प्रवाह तीव्र गति से बढ़ रहा