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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
आगमों के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं उनमें भगवती सूत्र का सम्पादन और प्रकाशन सुन्दर हुआ है। अद्यतन शैली में सम्पादन किया है। गणितानु योग, द्रव्यानुयोग आदि अनुयोगों में आगम साहित्य के विषयों का पृथक्करण किया गया है जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जैनागम निर्देशिका में ४५ आगमों की विषय सूची दी गई है।
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कविरत्न अमरचन्द्रजी महाराज ने श्रमणसूत्र व सामायिकसूत्र पर सुन्दर भाष्य लिखे हैं। उन्होंने सभाष्य निशीथसूत्र का भी सुन्दर सम्पादन किया है।
earerna के आठवें अध्ययन कल्पसूत्र पर मैंने भी सम्पादन कर शोध प्रधान विवेचन लिखा है जो हिन्दी में अमर जैन आगम शोध संस्थान गढ़ सिवाना राजस्थान से प्रकाशित हुआ है और उसका गुजराती अनुवाद सुधर्मा ज्ञान मन्दिर कान्दावाडी नं० ४ से प्रकाशित हुआ है।
आचार्य श्री तुलसी जो 'तेरापंथ' समुदाय के तेजस्वी आचार्य हैं। उनके नेतृत्व में पण्डित मुनिश्री नथमलजी ने दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, आचाराङ्ग व स्थानाङ्ग का सुन्दर सम्पादन किया है और तुलनात्मक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण विवेचन भी लिखा है। साथ ही दशवेकालिक और उत्तराध्ययन के समीक्षात्मक अध्ययन भी प्रकाशित हुए हैं। 'अंग सुत्ताणि' के तीन भागों में मूल ग्यारह अंग प्रकाशित हुए हैं।
पण्डित मुनिश्री फूलचन्दजी महाराज पुफ्फभिक्खु ने सुत्तागमे के नाम से दो भागों में मूल बत्तीस आगम प्रकाशित किये हैं और अत्यागमे के तीन भागों में ग्यारह अंगों का अनुवाद भी प्रकाशित किया है । महासती चन्दनाजी ने उत्तराध्ययन का अनुवाद विशेष टिप्पण सहित प्रकाशित किया है।
इस प्रकार समय-समय पर युग के अनुकूल आगम साहित्य पर विराट व्याख्या साहित्य निर्मित हुआ है जो आगमों के गुरु-गंभीर रहस्यों को समझने में अत्यन्त उपयोगी है। आगमों पर आधुनिक दृष्टि से तुलनात्मक शोध प्रधान व्याख्या साहित्य लिखा जाय, यह युग की माँग है और आगम के उन दार्शनिक तथ्यों पर भी तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन