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________________ टीका साहित्य : एक विवेचन मूल आगम, नियुक्ति और भाष्य साहित्य प्राकृत भाषा में निर्मित है। चूर्णि साहित्य में प्रधानरूप से प्राकृत भाषा है पर गौण रूप से संस्कृत भाषा का भी प्रयोग हुआ है। उसके पश्चात् संस्कृत टीकाओं का युग आया। यह युग जैन साहित्य में स्वणिमयुग के रूप में प्रसिद्ध है। इस युग में आगमों पर तो टीकाएँ लिखी हो गईं परन्तु साथ ही साथ नियुक्तियों भाष्यों और टीकाओं पर टीकाएँ रची गई हैं। निर्युक्ति साहित्य में आगमों के शब्दों की व्याख्या व व्युत्पत्ति है । भाष्य साहित्य में विस्तार से आगमों के गम्भीर भावों का विवेचन है । चूर्णि साहित्य में निगूढ़ भावों को लोककथाओं के आधार से समझाने का प्रयास है तो टीका साहित्य में आगमों का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण है । टीकाकारों ने प्राचीन निर्युक्ति, भाष्य और चूर्णि साहित्य का अपनी टीकाओं में प्रयोग किया ही है किन्तु नये-नये हेतुओं द्वारा उन्हें और भी अधिक पुष्ट किया है। संक्षिप्त और विस्तृत दोनों प्रकार की टीकाएँ निर्मित हुई हैं। टीकाओं के लिए विविध नामों का प्रयोग आचार्यों ने किया है, यथाटीका, वृत्ति, विवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्ण, पंजिका, टिप्पण, टिप्पनक, पर्याय, स्तबक, पीठिका, अक्षरार्थ । आगम के व्याख्यात्मक ग्रन्थों में टीकाओं का अपना महत्त्व है। सभी टीकाएँ संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं। संस्कृत साहित्य में इनका गौरवपूर्ण स्थान है। इन टीकाओं में केवल आगमिक तत्त्वों पर विवेचन ही नहीं है अपितु अन्यान्य जैन व जैनेतर परम्पराओं का भी इसमें समुचित आकलन हुआ है। इनके अध्ययन और परिशीलन से उस युग की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों का भी सम्यक् परिज्ञान हो जाता है। टीका साहित्य के रचयिता साहित्य, व्याकरण तथा भाषा-विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित थे। उन्हें सामाजिक परम्पराओं का भी गूढ़ ज्ञान था। साथ ही इतिहास, भूगोल, रसायनशास्त्र, शरीर विज्ञान, औषधि विज्ञान का
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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