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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५०३ एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, पद्र, मुकूट आदि आभूषण का स्वरूप बताकर उनको धारण करने का निषेध है व आलिङ्गनादि का भी निषेध किया गया है। अष्टम उद्देशक में उद्यान, उद्यानगृह, उद्यानशाला, निर्याण, निर्याणगृह, निर्याणशाला, अट्ट, अट्टालक, चरिका, प्राकार, द्वार, गोपुर, दक, दकमार्ग, दकपथ, दकतीर, दकस्थान, शून्यगृह, शून्यशाला, भिन्नगृह, भिन्नशाला, कूटागार, कोष्ठागार, तृणगृह, तृणशाला, तुषगृह, तुषशाला, आदि का अर्थ स्पष्ट कर श्रमण को यह सूचित किया है कि इन सभी स्थानों में अकेली महिला के साथ विचरण न करे। निशा में स्वजन-परिजन आदि के साथ भी न रहे। रहने पर प्रायश्चित्त का विधान है। साथ ही रात्रि में भोजन आदि की अन्वेषणा करना, ग्रहण करना आदि के लिए भी प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। नौवें उद्देशक में बताया है कि जो मूर्धाभिषिक्त है अर्थात् जिसका अभिषेक हो चुका है; जो सेनापति, अमात्य, पुरोहित, श्रेष्ठि और सार्थवाह सहित जो राज्य का उपभोग करता है उसका पिण्ड श्रमण के लिए वयं है। जो मूर्धाभिषिक्त नहीं हैं उनके लिए यह नियम नहीं है। अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादत्रोंच्छनक ये आठ वस्तुएं राजपिण्ड में आती हैं। श्रमण को जीर्णान्तःपुर, नवान्तःपुर और कन्यकान्तःपुर में नहीं जाना चाहिए। कोष्ठागार, भाण्डागार, पानागार, क्षीरगृह, गंजशाला, महानसशाला आदि का भी स्वरूप बताया गया है। दसवें उद्देशक में भाषा की अगाढ़ता, परुषता आदि का विवेचन कर उसके प्रायश्चित्त का वर्णन किया है। आधार्मिक आहार के दोष व प्रायश्चित्त, रुग्ण की वैयावृत्य, उसकी यतना, उपेक्षा करने पर प्रायश्चित्त का विधान । वर्षावास, पर्युषणा के एकार्थक शब्द । आर्य कालक की भगिनी सरस्वती जो अत्यन्त रूपवती थी-उज्जयिनी के राजा गर्दभिल्ल द्वारा उसके अपहरण आदि की कथा दी गई है। ..ग्यारहवें उद्देशक में पात्र-ग्रहण की चर्चा है। भय के पहले चार भेद किये हैं-(१) पिशाच आदि से उत्पन्न भय, (२) मनुष्यादि से उत्पन्न भय, (३) वनस्पति से उत्पन्न भय, और (४) अकस्मात् उत्पन्न होने वाला भय । फिर इहलोक, परलोक आदि सात भय बताये हैं।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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