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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५०१ धूर्ताख्यान का मूल आधार आचार्य हरिभद्र कृत धूर्ताख्यान की प्राचीन कथा है । इसके बाद लोकोत्तर मृषावाद, अदत्तादान, मैथून, परिग्रह और रात्रि भोजन का वर्णन है, जो दपिका सम्बन्धी और कल्पिका सम्बन्धी दो भागों में विभक्त है। दपिका में उन विषयों में लगने वाले दोषों का वर्णन है और उन दोषों के सेवन का निषेध किया गया है। कल्पिका में उनके अपवादों का वर्णन है। मूलगुण प्रतिसेवना के पश्चात उत्तरगूण प्रतिसेवना का वर्णन है। उसमें पिण्डविशुद्धि आदि का वर्णन है। पीठिका के उपसंहार में इस बात पर प्रकाश डाला है कि निशीथ पीठिका का सूत्रार्थ बहुश्रुत को ही देना चाहिए, अयोग्य पुरुष को नहीं।
प्रथम उद्देशक में चतुर्थ महावत पर विस्तार से विश्लेषण है। इसमें पांच प्रकार की चिलिमिलिकाओं को ग्रहण करना, उनका प्रमाण, उपयोग पर प्रकाश डाला है। लाठी और उसकी उपयोगिता पर भी विचार किया है। वस्त्र फाड़ने, सीने आदि के नियमोपनियम भी बताये हैं। . द्वितीय उद्देशक में पादप्रोंच्छन के ग्रहण, सुगन्धित पदार्थों के सूंघने, कठोर भाषा का उपयोग करने तथा स्नान आदि करने का निषेध है और दाता की पूर्व व पश्चात् स्तुति का भी निषेध किया गया है। द्रव्य संस्तव ६४ प्रकार का है। उसमें जव, गोधूम, शालि आदि २४ प्रकार के धान्य; सुवर्ण, तवू, तंब, रजत, लौह, शीशक, हिरण्य, पाषाण, वेर, मणि, मौक्तिक प्रवाल, शंख, तिनिश, अगरु, चन्दन, अभिलात वस्त्र, काष्ठ, दन्त, चर्म, बाल, गंध, द्रव्य, औषध ये २४ प्रकार के रत्न; भूमि, घर, तरु ये तीन प्रकार के स्थावर; शकट आदि और मनुष्य ये दो प्रकार के द्विपद; गौ, उष्ट्री, महिषी, अज,मेष, अश्व, अश्वतर, घोटक, गर्दभ, हस्ती ये दस प्रकार के चतुष्पद और ६४ वां कुप्य उपकरण है।
शय्यातर का पिण्ड अग्राह्य है। उसे ग्रहण करने पर मास लघु का प्रायश्चित्त है। (१) सागारिक कौन होता है, (२) वह शय्यातर कब बनता है, (३) उसके पिण्ड के प्रकार, (४) अशय्यातर कब बनता है, (५) सागारिक किस संयत द्वारा परिहर्तव्य है, (६) सागारिक-पिण्ड के ग्रहण से दोष, (७) किस परिस्थिति में सागारिक पिण्ड ग्रहण किया जा सकता है । (5) यतना से ग्रहण करना, (९) एक या अनेक सागारिकों से ग्रहण करना आदि विषयों पर चिन्तन किया गया है। सागारिक के सागारिक, शय्यातर,