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________________ भाष्य-साहित्य : एक चिन्तन नियुक्तियों की व्याख्या शैली अत्यन्त गूढ़ व संक्षिप्त थी। उनमें विषय-विस्तार का अभाव था। उनका मुख्य लक्ष्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना था। नियुक्तियों के गंभीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए विस्तार से नियुक्तियों के समान ही प्राकृत भाषा में जो पद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गईं वे भाष्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। नियुक्तियों के शब्दों में छिपे हुए अर्थ-बाहुल्य को अभिव्यक्त करने का श्रेय सर्वप्रथम भाष्यकारों को है। भाष्यों में अनेक स्थलों पर मागधी और शौरसेनी के प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। मुख्य छन्द आर्या है । भाष्य साहित्य में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियां, लौकिक कथाएँ और परम्परागत श्रमणों के आचारविचार की विधियों का प्रतिपादन किया गया है। जैसे प्रत्येक आगम ग्रन्थ पर नियुक्तियाँ नहीं लिखी गई वैसे ही प्रत्येक नियुक्ति पर भी भाष्य नहीं लिखा गया। कुछ भाष्य नियुक्तियों पर और कुछ भाष्य मूलसूत्रों पर लिखे गये हैं । निम्न आगम-ग्रन्थों पर भाष्य उपलब्ध होते हैं(१) आवश्यक (६) व्यवहार (२) दशवकालिक (७) निशीथ (३) उत्तराध्ययन (८) जीतकल्प (४) बृहत्कल्प (8) ओधनियुक्ति (५) पंचकल्प (१०) पिण्डनियुक्त भाष्यकारों में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण और संघदासगणी ये दो मूर्धन्य हैं। विशेषावश्यकभाष्य और जीतकल्पभाष्य के रचयिता जिनभद्र हैं एवं बृहत्कल्पलघुभाष्य, पंचकल्पमहाभाष्य के निर्माता संघदासगणी हैं। व्यवहारभाष्य और बृहत्कल्पबृहद्भाष्य के रचयिता आचार्यों का नाम अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। चिन्तकों का ऐसा मानना है कि इन दोनों भाष्यों के रचयिता अन्य आचार्य होने चाहिए । बृहद्भाष्य के लेखक बृहत्कल्पचूर्णिकार और बृहत्कल्पविशेषचूर्णिकार के बाद में हए
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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