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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४४७ निधान आदि द्रव्यप्रणिधि है । इन्द्रियभावप्रणिधि है जो प्रशस्त और अप्रशस्त
प्रणिधि रूप से दो प्रकार की है। प्रणिधि और नोइन्द्रियप्रणिधि ये रूप से दो प्रकार की है ।
चार,
नवम अध्ययन का नाम विनयसमाधि है । भावविनय के लोकोपअर्थनिमित्त, कामहेतु, भयनिमित्त और मोक्षनिमित्त ये पांच भेद किये गये हैं। मोक्षनिमित्तक विनय के दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और उपचार सम्बन्धी ये पाँच भेद किये गये हैं।
दसवें अध्ययन का नाम सभिक्षु है। प्रथम नाम, क्षेत्र आदि निक्षेप की दृष्टि से 'स' पर चिन्तन किया है उसके पश्चात् 'भिक्षु' का निक्षेप की दृष्टि से विचार किया है। भिक्षु के तीर्ण, तायी, द्रव्य, व्रती, क्षान्त, दान्त, विरत, मुनि, तापस, प्रज्ञापक, ऋजु, भिक्षु, बुद्ध, यति, विद्वान, प्रव्रजित, अनगार, पासण्डी, चरक, ब्राह्मण, परिव्राजक, श्रमण, निर्ग्रन्थ, संयत, मुक्त, साधु, रूक्ष, तीरार्थी आदि पर्यायवाची दिये हैं। पूर्व श्रमण के जो पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं उसमें भी कुछ ये शब्द आ गये हैं ।
चूलिका का निक्षेप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप से चार प्रकार का है। यहाँ पर भावचूडा ही अभिप्रेत है जो क्षायोपशमिक है ।
इस प्रकार दशवेकालिकनियुक्ति की ३७१ गाथाओं में अनेक लौकिक और धार्मिक कथाओं एवं सूक्तियों के द्वारा सूत्र के अर्थ को स्पष्ट किया गया है। हिंगुशिव, गंधविका, सुभद्रा, मृगावती, नलदाम, और गोविन्दवाचक आदि की कथाओं का संक्षेप में नामोल्लेख हुआ है। सम्राट् कूणिक ने गणधर गौतम से जिज्ञासा प्रस्तुत की- भगवन् ! चक्रवर्ती मर कर कहाँ पर उत्पन्न होते हैं ? समाधान दिया गया-सातवीं नरक में। पुनः जिज्ञासा प्रस्तुत हुईभगवन् ! मैं कहाँ पर उत्पन्न होऊँगा ? गौतम ने समाधान दिया- छठी नरक में । प्रश्नोत्तर के रूप में कहीं-कहीं पर तार्किक शैली के भी दर्शन होते हैं ।
उतराध्ययननियुकि
दशवेकालिकनियुक्ति की भांति इस नियुक्ति में भी अनेक पारिभाषिक शब्दों का निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया गया है और अनेक शब्दों के विविध पर्यायवाची शब्द भी दिये हैं।
सर्वप्रथम उत्तराध्ययन शब्द की निक्षेप दृष्टि से व्याख्या की गई है। अध्ययन की भाव निक्षेप से व्याख्या करते हुए लिखा है प्राम्बद्ध या बध्यमान