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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
प्रत्याख्यान के मुख्य दो भेद हैं-(१) मूलगुणप्रत्याख्यान और (२) उत्तरगुणप्रत्याख्यान । मूलगुणप्रत्याख्यान के सर्व मूलगुणप्रत्याख्यान और देशगुणप्रत्याख्यान दो भेद होते हैं। साधुओं के ५ महाव्रत सर्व मूलगुणप्रत्याख्यान है और गृहस्थों के ५ अणुव्रत देशगुणप्रत्याख्यान हैं। मूलगुण प्रत्याख्यान यावज्जीवन के लिए होता है और उत्तरगुणप्रत्याख्यान कुछ दिनों के लिए होता है। उसके भी देशउत्तरगुणप्रत्याख्यान और सर्वउत्तरगुणप्रत्याख्यान ये दो भेद हैं। ३ गुणव्रत व ४ शिक्षावत देशउत्तरगुणप्रत्याख्यान हैं और अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित, नियंत्रित, साकार, निराकार, परिमाणकृत, निरवशेष, सांकेतिक, अद्धासमय ये १० प्रकार का प्रत्याख्यान सर्व उत्तरगुणप्रत्याख्यान है जो साधु और श्रावक दोनों के लिए है।
प्रत्याख्यान आवश्यक संयम की साधना में दीप्ति पैदा करता है। त्याग-बैराग्य को दृढ़ करता है अत: प्रत्येक साधक का कर्तव्य है कि वह प्रत्याख्यान स्वीकार कर अपनी आत्मा की शुद्धि करे।।
आवश्यक से जहाँ आध्यात्मिक शुद्धि होती है वहाँ लौकिक जीवन में भी समता, नम्रता, क्षमाभाव आदि सद्गुणों की वृद्धि होने से आनंद के निर्मल झरने बहने लगते हैं।