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- अंगबाह्य आगम साहित्य ३६६ पांचवें उद्देशक में प्रवर्तिनी को कम से कम दो अन्य साध्वियों के साथ शीतोष्णकाल में ग्रामानुग्राम विचरण करना चाहिए और गणावच्छेदिका के साथ तीन अन्य साध्वियां होनी चाहिए। वर्षाऋतु में प्रवर्तिनी के साथ तीन और गणावच्छेदिका के साथ चार साध्वियां होनी चाहिए।
प्रतिनी आदि की मृत्यु और पदाधिकारी की नियुक्ति के सम्बन्ध में जैसा श्रमणों के लिए कहा गया है वैसा ही श्रमणियों के लिए भी समझना चाहिए।
वैयावृत्य के लिए सामान्य विधान यह है कि श्रमण, श्रमणी से और श्रमणी, श्रमण से वैयावृत्य न करावे किन्तु अपवादरूप में परस्पर सेवाशुश्रूषा कर सकते हैं।
सर्पदंश आदि कोई विशिष्ट परिस्थिति पैदा हो जाय तो अपवादरूप में गहस्थ से भी सेवा करवाई जा सकती है। यह विधान स्थविरकल्पियों के लिए है। जिनकल्पियों के लिए सेवा का विधान नहीं है । यदि वे सेवा करवाते हैं तो पारिहारिक तपरूप प्रायश्चित्त करना पड़ता है।
... छठे उद्देशक में बताया है कि अपने स्वजनों के यहाँ बिना स्थविरों की अनुमति प्राप्त किए नहीं जाना चाहिए। जो श्रमण-श्रमणी अल्पश्रुत व अल्प-आगमी हैं उन्हें एकाकी अपने सम्बन्धियों के यहां नहीं जाना चाहिए। यदि जाना है तो बहुश्रुत व बहुआगमधारी श्रमण-श्रमणी के साथ जाना चाहिए। श्रमण के पहुँचने के पूर्व जो वस्तु पक कर तैयार हो चुकी है वह ग्राह्य है और जो तैयार नहीं हुई है वह अग्राह्य है।
आचार्य उपाध्याय यदि बाहर से उपाश्रय में आवें तो उनके पाँव पोंछकर साफ करना चाहिए। उनके लघुनीत आदि को यतनापूर्वक भूमि पर परठना चाहिए। यथाशक्ति उनकी वैयावृत्य करनी चाहिए। उपाश्रय में उनके साथ रहना चाहिए । उपाश्रय के बाहर जावें तब उनके साथ जाना चाहिए । गणावच्छेदक उपाश्रय में रहें तब साथ रहना चाहिए और उपाश्रय से बाहर जाएं तो साथ जाना चाहिए।
श्रमण-श्रमणियों को आचारांग आदि आगमों के ज्ञाता श्रमण-श्रमणियों के साथ रहना कल्पता है और बिना ज्ञाता के साथ रहने पर प्रायश्चित्त का भागी बनना पड़ता है।
किसी विशेष कारण से अन्य गच्छ से निकलकर आने वाले श्रमणश्रमणी यदि निर्दोष हैं, आचारनिष्ठ हैं, शबल दोष से रहित हैं, क्रोधादि से