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________________ ३२० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा ज्ञान आत्मा का स्वाभाविक गुण है। स्वाभाविक गुण वह कहलाता है जो अपने आश्रयभूत द्रव्य का कभी त्याग नहीं करता । ज्ञान के अभाव में आत्मा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। व्यवहारनय की दृष्टि से ज्ञान और आत्मा में भेद माना गया है पर निश्चयनय की दृष्टि से ज्ञान और आत्मा में किसी भी प्रकार का भेद नहीं है। नंदीसूत्र में सर्वप्रथम ज्ञान के आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान ये पांच प्रकार बताये हैं। उन पांच ज्ञानों के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेद किये हैं। प्रत्यक्ष के इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष-ये दो भेद करके इन्द्रियप्रत्यक्ष के श्रोत्रेन्द्रिय आदि पाँचों इन्द्रियों के क्रम से ५ भेद और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान-ये तीन भेद किये हैं। इसके बाद अवधिज्ञान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा है कि जिस ज्ञान की सीमा होती है उसे अवधि कहते हैं । अवधिज्ञान केवल रूपी पदार्थों को ही जानता है। मूर्तिमान द्रव्य ही इसके ज्ञेय विषय की मर्यादा है। जो रूप, रस, गंध और स्पर्श युक्त है वही अवधि का विषय है। अरूपी पदार्थों में अवधिज्ञान की प्रवृत्ति नहीं होती। षद्रव्यों में से केवल पुद्गलद्रव्य ही अवधि का विषय है क्योंकि शेष पाँच द्रव्य अरूपी हैं । अवधिज्ञान दो प्रकार का है--भवप्रत्यय और क्षायोपशमिकप्रत्यय । भवप्रत्यय अवधिज्ञान जन्म से ही होता है और वह देवों तथा नारकों को होता है। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्य और तिर्यंचों को होता है। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। इसे गुणप्रत्यय व भावप्रत्यय अवधिज्ञान भी कहते हैं। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान के छह जिस (१) अनुगामी-जिस क्षेत्र में स्थित जीव को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उससे अन्यत्र जाने पर नेत्र के समान जो साथ-साथ जाय । (२) अननुगामी-उत्पत्तिक्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र में जाने पर जो न रहे। (३) वर्धमान-उत्पत्ति के समय में कम प्रकाशमान हो और बाद में क्रमश: बढ़ता रहे। (४) होयमान-उत्पत्तिकाल में अधिक प्रकाशमान हो और बाद में क्रमशः घटता जाय।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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