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अंगar आगम साहित्य २३६ पाँचवें पद में है इसलिए अलग से इसका निर्देश आवश्यक नहीं था। फिर, प्रस्तुत पद में तो आयुकर्मकृत स्थिति का विचार है और वह अजीव में अप्रस्तुत है ।
पाँचवें पद का नाम विशेष पद है। विशेष शब्द के दो अर्थ हैं(१) प्रकार ( २ ) पर्याय । प्रथम पद में जीव और अजीव इन दो द्रव्यों के प्रकार -- भेद-प्रभेदों का वर्णन किया है तो इसमें इन द्रव्यों की अनन्त पर्यायों का वर्णन है । वहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक द्रव्य की अनन्त पर्यायें हैं तो समग्र की भी अनन्त ही होंगी। और द्रव्य की पर्यायें - परिणाम होते हैं तो वह द्रव्य कूटस्थनित्य नहीं हो सकता किन्तु उसे परिणामी नित्य मानना पड़ेगा। इस सूचन से यह भी फलित होता है कि वस्तु का स्वरूप द्रव्य और पर्याय रूप है। इस पद का 'विसेस' नाम दिया है परन्तु इस शब्द का उपयोग सूत्र में नहीं किया गया है। समग्र पद में पर्याय शब्द ही प्रयुक्त हुआ है। जैनशास्त्रों में इस पर्याय शब्द का विशेष महत्त्व है इसलिए पर्याय या विशेष में कोई भेद नहीं है। प्रकार या भेद और अवस्था या परिणाम इन दो अर्थों प्रयुक्त हुआ है। जैन आगमों में पर्याय शब्द प्रचलित था परन्तु वैशेषिकदर्शन में विशेष शब्द का प्रयोग होने से उस शब्द का प्रयोग पर्याय अर्थ में और वस्तु के द्रव्य के भेद अर्थ में भी हो सकता है - यह बताने के लिए आचार्य ने इस प्रकरण का 'विसेस' नाम दिया हो ऐसा ज्ञात होता है ।
यहाँ पर्याय शब्द
में
प्रस्तुत पद में जीव और अजीव द्रव्यों के भेद और पर्यायों का निरूपण है। भेदों का निरूपण तो प्रथम पद में था परन्तु प्रत्येक भेद में अनन्त पर्यायें हैं। इस तथ्य का सूचन करना इस पाँचवें पद की विशेषता है। इसमें २४ दंडक और २५वें सिद्ध इस प्रकार उनकी संख्या और पर्यायों का विचार किया गया है ।
जीव द्रव्य के नारकादि भेदों की पर्यायों का विचार अनेक प्रकार से--अनेक दृष्टियों से किया गया है। इसमें जैनसम्मत अनेकान्त दृष्टि का प्रयोग हुआ है। जीव के नारकादि के जिन भेदों की पर्यायों का निरूपण है उसमें द्रव्यार्थता, प्रदेशार्थता, अवगाहनार्थता, स्थिति, कृष्णादि वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, ज्ञान और दर्शन इन दश दृष्टियों से विचारणा की गई है ।
१ पन्नवणासूत्र - प्रस्तावना पुण्यविजयजी महाराज, पृ० ६०