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१९८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा का निषेध है।' इस कथन का क्या रहस्य है यह चिन्तकों के लिए विचारणीय है।
उपसंहार
इस प्रकार स्पष्ट है कि दृष्टिवाद बहुत ही विशाल और महत्त्वपूर्ण अंग था। इसका महत्त्व इसी से स्पष्ट हो जाता है कि जब आर्यरक्षित वेदवेदांगों तथा अन्य सभी प्रकार के ज्ञान के पारगामी विद्वान होकर लौटे तो उनकी माता ने एक ही शब्द कहा-'दृष्टिवाद पढ़ो। क्योंकि इसी के द्वारा तुम्हें आत्मा का सच्चा स्वरूप ज्ञात हो सकेगा। तुम समस्त सिद्धान्त के ज्ञाता हो जाओगे। आत्म-कल्याण के लिए दृष्टिवाद का अध्ययन अपेक्षित है। और माता के इन वचनों को सुनकर आर्यरक्षित दृष्टिवाद के अध्ययन के लिए चल दिए।
दृष्टिवाद की विशालता, गंभीरता, अब केवल अतीत की वस्तु रह गई है। ज्ञान का यह विपुल भंडार अप्राप्य है। इसका उल्लेख भर ही शेष है।
१ बृहत्कल्पनियुक्ति, पृ० १४६