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१. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा ग्रन्थत्रयी नामक ग्रन्थ में तेवीसाए 'सुयडज्झाणेसु" पद प्राप्त होता है। प्रस्तुत पद की प्रभाचन्द कृत वृत्ति में तेईस अध्ययनों के नाम दिये हैं। वे आवश्यक वृत्ति के नामों के साथ मिलते-जुलते हैं। वर्गीकरण
सूत्रकृतांग को चूर्णिकार ने चरणकरणानुयोग की कोटि में रखा है। तो आचार्य शीलांक ने उसे द्रव्यानुयोग में । उनका यह मन्तव्य है कि आचारांग में मुख्य रूप से चरणकरणानुयोग का वर्णन है और सूत्रकृतांग में द्रव्यानुयोग का वर्णन है।
समबायाङ्ग और नन्दीसूत्र में द्वादशाङ्गी का जो परिचय दिया गया है वहाँ पर 'एवं चरणकरणपरूवता' यह पाठ उपलब्ध होता है। आचार्य अभयदेव ने चरण का अर्थ श्रमण धर्म और 'करण' का अर्थ पिण्ड विशुद्धि समिति आदि किया है।
१ समए वेदालिज्जे एतो उबसम्म इत्थिपरिणामे। . .
परयंतर वीरथुदी कुसीलपरिभासए वीरिए। धम्मो य अम्ग मग्गे समोवसरणं तिकाल गंथहिदे । आदा तदित्यगाथा पुण्डरीको किरियाठाणे य॥
आहारय परिणामे पच्चक्खाण अणगार गुणकित्ति । .' सुद अत्थं णालंदे सुद्दयडज्झाणाणि तेवीसं॥
--प्रतिक्रमण अन्यत्रयी की वृत्ति २ समए वेयालीयं उवसम्मपरिण थीपरिण्णा य ।
निरयविभती वीरत्थुओ य कुसीलाणं परिहासा ॥ . वीरिय धम्म समाही मग समोसरणं अहतहं गंयो। जमई तह गाहा सोलसमं होइ अज्झयणं ।। ... पुण्डरीय किरियट्ठा णं आहारपरिण्ण पच्चक्खाण किरिया य। अणगार अद्द नालंद सोलसाई तेवीसं ।।
-आवश्यक सूत्र, पृ० ६५१-६५८ ३ इह चरणाणुओगे ण अधिकारो
-सूत्रकृतांग चूणि, पृ०.५ ४ तत्राचारांगे चरणकरणप्रधान्येन व्याख्यातम् अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्येन
सूत्रकृताख्यं द्वितीयमंगं व्याख्यातुमारभ्यते। -सूत्रकृतांग वृत्ति, पत्र ५ चरणम्-वतश्रमणधर्म संयमाचनेकविधम् ।
करणम्-पिण्डविशुद्धिसमित्याद्यनेकविधम् । -समवायांग वृत्ति, पत्र १०२