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________________ ८८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ नापतौल हो जाता है। पाश्चात्य दार्शनिक सोक्रेज (Socrates) ने कीर्ति की बहुत सुन्दर व्याख्या की है "Fame is the perfume of heroic Weeds" 'कीर्ति, दान. दया आदि साहसिक कार्यों को सुगन्धि है।' सत्कार्य के फलस्वरूप सारे वातावरण में। एक महक फैल जाती है। वह महक सुवास. सुगन्ध या सौरभ लोगों को अपनी ओर से आकर्षित करती है। यद्यपि सुगन्ध आँखों में दिखाई नहीं देती, परन्तु नाक से सूंघी जा सकती है। इसी प्रकार सत्कार्य के फलस्वरूप मिलने वाली सद्भावनाएं, शुभेच्छाएँ, या शुभाशीषं दिखाई नहीं देतीं, पर अनुभव तो की जाती हैं। इन्हीं आशीर्वाद आरि के रूप में कीर्ति से सुख का अनुभव होता ही है। इसके कारण जनता में सत्कार्य के प्रति अनुराग पैदा होता है। लोगों का यह सस्कृति के प्रति अनुराग ही एक प्रकार से तिति है। __मैं एक छोटे से दृष्टान्त द्वारा इसे समझा ई बम्बई में एक बहुत बड़ी चाली (बाड़ी) में एक सज्जन सद्गृहस्थ परिवार रहता था। उस परिवार के विचार, व्यवहार, वाणी और आचरण से चाली के सभी लोग प्रसन्न और प्रभावित थे। एक दिन परिवार के मुखिया को नौकरी के तबादले का आईर आ जाने से सपरिवार उस चाली को छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा। उसके जाने के बाद चाली के लोग कहने लगे "वाह ! कितना अच्छा परिवार था। इसके कारण हमारी सारी चाली सुवासित थी। इस परिवार के चले जाने से इस चाली की रौनक चली गई। सारी चाली मानो खाली-खाली-सी लगती है। यह परिवार जहाँ भी जाए. उसका भला हो।" इस प्रकार उस सद्गृहस्थ परिवार के प्रति स्थानीय जनता की आन्तरिक सद्भावनाएं ही कीर्ति है। एक पाश्चात्य लेखक स्टेनिसलाउस (Stanisiaus) इसी बात का समर्थन करता है "What is fame? The advantage of being known by people of whom you yourself know nothing, and for whom you care as little." “कीर्ति क्या है ? जनता द्वारा जाना हुआ लाभ, जिसे तुम स्वयं बिल्कुल नहीं जानते और न ही उसकी जरा भी परवाह करता हो।" आज संसार में महापुरुषों के नाम चलते हैं, जनता की जबान पर उनके नाम चढ़े हुए हैं, उनके सद्गुणों तथा उनके द्वारा किये गए सत्कार्यों से भी बहुत से लोग परिचित होते हैं। जगह-जगह उनकी जयंतियां मनाई जाती हैं, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान किया जाता है, क्योंकि उनके सत्कार्यों घं जीवन से समाज का अत्यन्त लाभ हुआ है। उनके उपदेशों और कार्यों से तथा आचरणों और व्यवहारों से मानव जीवन प्रभावित हुआ है, इस कारण समाज के हृदय में उनका मतत कीर्तन चलता रहता है। इस प्रकार उन सज्जनों की कीर्ति अपना काम करती रही है। जब उन्होंने कार्य किया था, तब
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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