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________________ २६.. क्रुद्ध कुशील पाता है अकीर्ति धर्मप्रेमी बन्धुओ! आज मैं आपको ऐसे जीवन की झांकी कराना चाहता हूँ, जिस जीवन से अकीर्ति प्राप्त होती है, जो अकीर्तिमय जीवना है। मनुष्य के किये हुए पापमय या अनिष्ट आचरण से उसके जीवन को खुशबू के बदले बदबू फैलती है, लोगों में उसकी वाहवाही, प्रसिद्धि, धन्यता, नामवरी, ख्यातिया कीर्ति के बदले धिक्कार, तिरस्कार, बदनामी या अपकीर्ति होती है। गौतमकुलक का यह चौबीसवाँ जीवनसूत्र है। इसमें गौतम ऋषि ने बताया है ___ “कुचं कुसीले भागए अकित्ती" 'जो क्रोधी और कुशील होता है, उसे अकीर्ति मिलती है।' अकीर्ति क्या, कीर्ति क्या ? इस जीवनसूत्र के द्वारा महर्षि गौतम के यह ध्वनित कर दिया है कि अकीर्तिमय जीवन उपादेय नहीं है, ऐसा जीवन त्याज्य है। जीवन यदि कीर्तिमय हो तो वही सार्वजनिक दृष्टि से उपादेय हो सकता है, कीर्तियुक्त जीवन हेय है उसे साधारण से साधारण व्यक्ति भी नहीं चाहता। महाभारत में बताया है कीर्तिर्हि पुरुष लोके संजीवयति मातृवत् । अकीर्तिर्जीवितं हन्ति, जीवितोऽपि शरीरिणः आत्मकीर्ति का भाव पुरुष को माता की तरह जीवन प्रदान करता है, जबकि अकीर्ति मनुष्य को जीते-जी मार देती है। प्रश्न होता है, कीर्ति ऐसी क्या चीज है, जिसे सभी नहीं चाहते और कीर्ति ऐसी कौन-सी वस्तु है, जिसे लोग चाहते हैं ? सर्वप्रथम इसके लिए मैं आपको तात्त्विक गहराई में ले जाना चाहूंगा । जैन दर्शन ने इस पर बहुत गहराई से मन्थन किया है। आठ कर्मों में नामकर्म भी एक है जो शरीर से सम्बन्धित पुण्ज-पापजनित दशा को बतलाता है। नाभकर्म के भेदों में एक है. यशःकीर्तिनामकर्म और दसरा है-अयशःकीर्तिनामकर्म । यशःकीर्तिनामकर्म का अर्थ है-जिस कर्म के उदय से संसार में यश और कीर्ति फैले लोग
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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