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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर :
२ ५ शुभाशुभ या प्रियाप्रिय प्राप्त होने पर अनासक्त, (५) तृष्णा क्रोध भयमुक्त, (६) सम्पूर्ण इन्द्रियविजय, (७) राग-द्वेष से विमुक्त, प्रसन्न एवं शान्त ।
इसी स्थितप्रज्ञ को आचारांग सूत्र में स्थितामा (ठिअप्पा) कहा है। जो भी हो, इस प्रकार की स्थिरबुद्धि वाला जीवन ही श्रेष्ठ जीवन कहलाता है।
वास्तव में स्थिरबुद्धि परिपूर्ण बुद्धि होता है। उसकी बुद्धि का सर्वांगीण विकास हो जाता है। पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो (Plato) से परिपूर्ण बूद्धि कहकर, इसके चार विभाग मानता है
Perfect wisdom hath foru partsa viz; wisdom the principle of doing things, aright, justice, the principle of doing things equally in public and private; fortitude, the prinsiple of not flying from danger but meeting it, and temperance, the principle of subduing desires and living moderately."
"पूर्ण बुद्धिमत्ता के चार विभाग होते हैं, जैसे---(१) बुद्धि-सब बातों को यथार्थ रूप से करने का सिद्धान्त, (२) न्याय--व्यक्तिगा और सार्वजनिक सब बातों को समान रूप से करने का सिद्धान्त, (३) सहनशीलता, धैरणे या साहस-खतरे से न भागने, बल्कि उससे मिलने (भिड़ने) का सिद्धान्त और (४) उम्साह--कामनाओं (इच्छाओं) का त्याग करना और मर्यादित रूप से रहना।"
इन सब विशेषताओं को देखते हुए नि:सन्देह कहा जाता है कि स्थिरबुद्धि मानव-जीवन के पद-पद पर अनिवार्य है। उसके बिना जीवन के विशिष्ट कार्य चाहे वे लौकिक हों या लोकोत्तर, अधूरे ही रहते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में स्थिरबुद्धि की आवश्यकता रहती है।
बन्धुओ ! मैं इस गहन जीवनसूत्र पर कहुत ही गहराई से विस्तृत रूप में कह गया हूँ।
आइए, हम भी परम कृपालु वीतराग प्रभु ऐसी ही स्थिरबुद्धि प्राप्त होने हेतु प्रार्थना के साथ स्वयं प्रयल करें
रहे स्थिर मम बुद्धि हर क्षण, ऐमा करो कृपा का दौर। करो कृपा का दौर, और नहीं, चाहूँ अर्थ का छोर । ध्रुव । जिससे बना दे स्वर्ग पृथ्वी को, बढ़ें मोक्ष की ओर। रत्नत्रय की सामग्री ले, पाएं प्रभु सिरमौर । रहे। प्रति प्रवृत्ति में हरदम हर पल रहे समुति का जोर ।
कुमति न आए निकट कभी मम, जाऊँ मैं जिस टौर । रहे । महर्षि गौतम ने स्थिरबुद्धि युक्त जीवन वत सुन्दर नुस्खा हमारे सामने प्रस्तु कर दिया है—"बुद्धि अचंडं भयए विणीय।" आए इसे हृदयंगम करें और जीवन में अपनाएँ, तभी जीवन सार्थक होगा।