________________
सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २
८३
गया कि आपने पढ़ाने में पूरा पक्षपात किया है। इसे आपने अच्छी तरह पढ़ाया। मेरा इतने वर्षों का परिश्रम बेकार गया। अच्छा समय आने दो, मैं आपकी पूरी खबर लूंगा।" यों अंटसंट बकने लगा। अविनीत छात्र की अकृति क्रोध से लाल हो गई थी। ओठ कांपने लगे। गुरु ने जैसे-तैसे समझाकर शान्त किया। फिर पूछा—वत्स ! ऐसी क्या बात हो गई, जिससे तुम गर्न हो रहे हो। मैंने तुम दोनों को एक साथ, एक ही पाठ पढ़ाया है। फिर बताओ, कौन-सी आघातजनक घटना हो गई ?"
अविनीत छात्र ने गहरी घटना सुनाते हुए कहा- मुझसे जब इसने पूछा कि ये पैर किसके हैं ? तब मैंने स्वाभाविक रूप से कहा इतने बड़े पैर हाथी के ही हो सकते हैं। पर इसने हथिनी के, फिर उसे कानी, उस पर सकार रानी, गर्भवती और आसन्नप्रसवा ये सब बातें बताई, जो सच निकलीं। क्या यह पढ़ाई में अन्तर नहीं है ? दूसरे विनीत शिष्य ने जब गुरुजी से ऐसा बताने और सारी बातें राच निकलने का कारण पूछा तो उसने विनयपूर्वक सभी बातें कारण सहित बताई और अन्त में गुरुजी का आभार मानते हुए कहा- "गुरुदेव ! यह सब आपकी ही कृपा का फल है।" गुरु ने अविनीत छात्र से पूछा- "क्यों भाई ! क्या ये सब बातें पुस्तक में लिखी हुई थीं, जो इसने बता दीं ? ऐसा नहीं है। वस्तुतः यह विनयी, नम्र और गुरु भक्तिपरायण है, जिससे इसकी बुद्धि, सूक्ष्म प्रखर और स्थिर हैं, जबकि तू उद्दण्ड, वाचाल, गजेन्द्रान्वेषी और गुरुविमुख है, इसलिए एक साथ पढ़ने पर भी तेरी बुद्धि स्थूल ही रही । "
गुरु की बात को काटते हुए अविनीत शिष्य ने कहा- "गुरुजी ! आगे वाली बात ने तो आपकी पक्षपातता पूरी तरह सिद्ध कर दी। एक बुढ़िया ने अपने परदेश गये हुए पुत्र के आने के बारे में पूछा तो मैंने उसके पानी के बड़े फूटे देख पुत्र की मृत्यु होना बताया तो वह मेरे पर अत्यन्त क्रुद्ध हो गई, लेकिन इसने पुत्र मिलन और अपार धन कमाने की संभावना बताई तो वह बात हूबहू मिल गई। इसलिए इसे तो भेंट, सम्मान और भोजन मिला! मगर मुझे तो अपमानित होना पड़ा। यह सब आपके पक्षपात के कारण ही तो हुआ।" विनीत शिष्य से गुरु ने वुढ़िया को कही हुई बात के सत्य मिलने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैंने ज्योतिष शास्त्र और स्वरोदय के सिद्धान्त तथा अनुमान से फलादेश बताया है। यह सब आप ही की कृपादृष्टि से हुआ है। आपके श्रीचरणों का स्मरण करके ही मैंने उत्तर दिये थे।
गुरु ने अविनीत शिष्य से कहा--"घड़ा फूटते ही तूने उसके पुत्र मरण की अशुभ बात कह दी, यह किस शास्त्र में लिखा है, फिर तुझं बोलने का ही होश नहीं है, तब तेरी बुद्धि सूक्ष्म और स्थिर कैसे होती ? तेरी अविनीतता ही तुझे स्थिरबुद्धि से वंचित कर देती है। तू अपने उपकारी गुरु के प्रति भी मिथ्या दोषारोपण कर रहा हैं। भला कैसे सद्बुद्धि प्राप्त होगी तुझे !"
स्थितप्रज्ञ लक्षण : भगवद्गीता में हाँ, तो मैं कह रहा था कि स्थिरबुद्धि के लिए दो मुख्य गुण आवश्यक हैं, जिन्हें