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आनन्द प्रवचन भाग ६
प्रति दुष्कल्पनाएँ करने लगा !
आगे चलकर एक तालाब की पाल पर ज्यीं ही वे दोनो विश्राम लेने के लिए बैठे, त्यों ही वहाँ पानी के दो घड़े सिर पर रखे हुए एक बुढ़िया आई। इन्हें ज्योतिषी समझ कर पूछने लगी— “ज्योतिषियों! क्या तुम बता सकते हो कि चिरकाल से मेरा परदेश गया हुआ लड़का कब तक आएगा ? बहुत समय से उसका कोई समाचार न मिलने से मेरा मन खिन्न रहता हैं । मेरा पुत्र से मिलन कब होगा ?"
बुढ़िया यह प्रश्न पूछ रही थी, तब उसका ध्यान चूक गया और सिर पर रखे दोनों घड़े गिर पड़े, फूट गये। इस प्रकार दोनों घड़ों को फूटते देख अविनीत छात्र ने झट से कहा - "बुढ़िया तेरा बेटा मर चुका है। उसवेत आने की कोई आशा नहीं है।" यह मर्माहत वचन सुनकर बढ़िया के हृदय में अत्यन्त चोट पहुँची। वह बोली-"अरे मूढ़ ! ऐसे अपशब्द क्यों बोलता है ? मेरे पुत्र के मरने की बात क्यों मुँह से निकाल रहा है ? अधम ! बोलने की जरा भी तमीज नहीं है, तेरे में !" किन्तु विनीत ने उसी क्षण बुढ़िया का प्रश्न लेकर स्वरोदय से पता लगाया और तत्कालीन स्थितियों पर विचार करके कहा—''माताजी ! आपका चिरंजीव अभी घर पर आया हुआ मिलेगा और वह बहुत-सा धन लेकर आएगा। चिन्ता न करो। मेरी बात सही न निकले तो मुझे सूचित करना । "
बुढ़िया की खुशी का पार न रहा। वह झटपट घर पहुंची। देखा तो पुत्र सामने आ रहा है। वह माता के चरणों में गिरा। माँ ने उसे छाती से लगाया और आँखों से हर्षा बरसाने लगी। घर आकर देखा तो पुत्र बहुत सा धन कमा कर लाया है। बुढ़िया को उस ज्योतिषि का वचन याद आया। सारी बातें ज्यों कि त्यों मिली देख, बुढ़िया ने तालाब पर आकर विनीत छात्र को खुशखबरी सुनाई कि "तुम्हारी बातें बिल्कुल सही निकली हैं। मुझे पुत्र से मिलकर अत्यन्त हर्ष हुआ है। लो यह पांच रुपये और कपड़े का थान। आज मेरे घर भोजन का न्योता है, पर इस कम्बख्त वा साथ में मत लाना। "
विनीत छात्र ने न्योता मान लिया, साथ ही इस शर्त पर साथी को भी लाने के लिए बुढ़िया को मना किया कि वहाँ पर यह कुछ न गोले । अविनीत के प्रति बुढ़िया की नफरत को देखकर उसके तन-बदन में आग लग गई। मन ही मन सोचा ---''देख लिया गुरु का पक्षपात | इसे खूब अच्छी तरह पढ़ाया है और मुझे नहीं। तभी तो इसकी बताई हुई सभी बातें मिल जाती हैं और मेरी एक भी बात नहीं मिलती। इस बार जाते ही मैं गुरु की पूरी खबर लूंगा।' यों अनेक प्रकार की मिथ्या कल्पनाएँ करने लगा। दोनों छात्र बुढ़िया के यहाँ भोजन करने गए। बुढ़िया ने अपने पुत्रों के सामने भी इस छोटी उम्र के विनीत छात्र की प्रशंसा की और कहा- यह बहुत ज्ञानी हैं। तेरे शुभागमन की बात इसी ने बतलाई थी। बुढ़िया ने बहुत प्रेम से भोजन कराया।
इसके पश्चात् दोनों छात्रों ने नगर में जाकर गुरुजी द्वारा बताया हुआ काम निपटाया । वहाँ भी विनीत छात्र का सिक्का जाम गया। आखिर दोनों छात्र अपने गाँव को वापस लौटे। गुरु के पास आते ही प्रणाम करना तो दूर रहा, अविनीत छात्र क्रोध में आकर गुरुजी से झगड़ा करने लगा। कहने लगा मुझे इस बार भली भांति पता चल