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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर :
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ठानकर यदला लेने को तैयार हो जाता है। अभिमानी व्यक्ति दूसरों की उन्नति, प्रशंसा
और प्रतिष्ठा होती देखकर जलभुन जाता है, वह उन्हें नीचा दिखाने और गिराने की फिराक में रहता है। उसकी बुद्धि हरदम अकारण शत्रु बनकर ऐसे लोगों के विरुद्ध षड्यन्त्र रचती है।
अभिमानी व्यक्ति किस प्रकार सात्त्विक और नवस्फुरणात्मक स्थिरबुद्धि प्राप्त नहीं कर पाता और निरभिमानी, विनीत एवं नम्र वक्ति किस प्रकार सात्त्विक एवं स्थिरबुद्धि प्राप्त कर लेता है ? इसे भली भांति समझने के लिए दो ब्राह्मण छात्रों का उदाहरण लीजिए
किसी नगर में एक उपाध्याय (गुरु) के पास दो शिष्य विद्याध्ययन करते थे। गुरु का दोनों छात्रों पर एक-सा ही स्नेह और सौहार्द था। किन्तु उन दोनों में एक छात्र विनीत, गुणग्राही, नम्र, आज्ञाकारी और सेवापरायण आ, जबकि दूसरा छात्र उद्दण्ड, कदाग्रही, अभिमानी, दोषदर्शी एवं उच्छृखल था। परन्तु गुरु उसकी उद्धतता को नजरअंदाज कर देते थे। वे बिना किसी प्रकार के पक्षपात एवं भेदभाव के दोनों को समान भाव से विद्यादान देते थे। इनके अध्ययन के दो विषय थे—ज्योतिष और आयुर्वेद ! धुरन्धर विद्वान उपाध्याय ने काफी लम्बे अर्से तक दोनों को पढ़ाया। दोनों छात्र इन विषयों पारंगत हुए। उपाध्याय जी दोनों छात्रों से यदाकदा दोनों विषयों का प्रयोग भी य. ताकि दोनों का अध्ययन ठोस हो जाये ।
एक बार कुछ दूरस्थ कस्बे से कुछ बीमारों को देखने का गुरुजी को आमंत्रण मिला। लेकिन अत्यन्त वृद्धावस्था के कारण उन्होंने स्वयं न जाकर इन दोनों शिष्यों को सारी बातें सनझाकर वहाँ भेज दिया।
रास्ते में बड़े-बड़े पैरों के चिन्ह देखकर विनीत छात्र ने पूछा- 'कहो भैया ! ये पादचिन्ह किसके हैं?" अविनीत छात्र तपाक मे बोला---" इसमें क्या पूछने की जरूरत है ? ये पैर तो साफ हाथी के हैं।" बिनीत छा बोला---''नहीं, ऐसा नहीं है। ये हथिनी के पैर हैं। हथिनी एक आंख से कानी है। उस पर कोई राजा की रानी सवार होकर इधर से गई है। रानी पूर्णमासा गर्भवती है और उसकेत शीघ्र ही पुत्र होने वाला है। इतना रहस्य मैं समझ पाया हूं।" अविनीत बोला---'बस-उप रहने दे, ज्यादा वकवास मत कर । ऐसी मनगढंत बातों को कौन मानता है। हाध कंगा को आरसी क्या? अगले गाँव में सारा पता चल जाएगा।" विनीत ने बहस करना उनित न समझा। दोनों धुपचाप आगे चले। अगले कस्वे में पहुंचे तो उसके बाहर ही राजा मि आदमी गुड़ बाँटते दिखाई दिये। पूछने पर पता चला कि यहाँ की राजरानी के अभी-अभी पुत्र हुआ है। उसी की खुशी में बधाई बांटी जा रही है। लोगों ने यह भी बताया कि रानी अभी-अभी हथिनी पर सवार होकर कहीं बाहर से आई थी। बाकी जितनी भी बातें विनीत छात्र ने कही थीं, व सब सच निकली। यह जानकर अविनीत छात्र मन ही मन कुढ़ने लगा कि पक्षपाती गुरु ने मुझे अच्छी तरह नहीं पढ़ाया। अन्यथा, इसकी बातें केसे मिल गई और मेरी एक भी यात क्या नहीं मिली। मैं इस बार गुरु से जवाब तलब काँगा। इस प्रकार वह उदण्ड छात्र गुरु के