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________________ सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ ७५ धन और पद होने से स्थिरबुद्धि नहीं आती। दुनिया की दृष्टि में आज बुद्धिमत्ता और सर्व गुण सम्पन्नता की कसौटी धन और पद को माना जाता है। जिसके पास बहुत धन है या विलासिता के प्रचूर साधन हैं या जिसको जितना बड़प्पन या उच्च पद मिला है, वह सांसारिक दृष्टि से उतना ही चतुर और बुद्धिमान कहलाता है। परन्तु विचार करने पर यह मापदण्ड सर्वथा अनुपयुक्त और भ्रान्तिपूर्ण सिद्ध होता है। जो छलबल से अधिकाधिक सम्पत्ति प्राप्त कर लेता है, जो अनुचित और अवांछनीय साधनो से धन इकट्टा कर लेता है या दूसरों का धन हड़प लेता है, उसे बुद्धिकुशल और चतुर मानने की संसार में उल्टी प्रथा चल पड़ी है। अनीति, अन्याय और तिकड़मबाजी से बहुत से व्यक्ति धनवान हो जाते हैं, धूरता से बड़प्पन या उच्च पद भी पा सकते हैं। अमीर बाप का अयोग्य बेटा भी प्रचूर सम्पत्ति का अधिकारी हो सकता है। लाटरी खुल काने पर हीन स्तर का व्यक्ति भी धनाढ्य कहला सकता है जबकि सज्जन और सद्गुणी व्यक्ति परिस्थितिवश पिछड़ी हालत में रह सकता है। इसमें बुद्धिमत्ता की परख कहाँ हुई ? संयोवश मिली हुई भौतिक सफलताओं या सिद्धियों से किसी भी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता या बड़प्पन को आँकना या नापना कथमपि उचित नहीं है और यह कान भी नितान्त भ्रान्तिपूर्ण है कि जो रात दिन धन के पहाड़ पर रहता है, उसकी बुद्धि बढ़ जाती है या उसमें बुद्धि स्वतः अनायास ही आ जाती है। एकमात्र भौतिक उन्नति में अपने जीवन का अणु-अणु लगा देने वाला चाहे व्यवहार में कितना ही बड़ा उपदमी क्यों न कहलाता हो, चाहे वह नेता और सत्ताधीश ही क्यों न हो, उसे स्थिरबुद्धि नहीं कहा जा सकता। स्थिरबुद्धि-प्राप्ति का मापदण्ड महर्षि गौतम ने संक्षेप में सौम्या और विनीतता को बताया है, न कि केवल धन-सम्पत्ति या कोरे पद को। बुद्धि ही बड़ी है, धन सम्पत्ति नहीं इसी पूर्वोक्त भ्रान्ति के कारण सहसा लांग कह देते है धन-सम्पत्ति बड़ी है, बद्धि का क्या बड़ा? बुद्धि तो धन से खरीदी जा सकती है। __'धनवान बड़ा होता है या बुद्धिमान ? इस बात का निर्णय करने के लिए एक राजा ने एक धनवान और एक बुद्धिमान को रोम के सम्राट के पास भेजा। साथ ही एक पत्र लिखा कि इन दोनों को तत्काल फाँसी पर लटका दिया जाये। धनवान ने वहाँ पहुंचकर फाँसी देने वालों को सोने का कार देकर जान बचाने की कोशिश की, मगर सफलता न मिली। किन्तु बुद्धिमान ने घोघ्र ही कुछ उपाय सोचकर धनवान के कान में कहा-"तुम यह कहना कि पहले में मरूँगा।' आगे का काम मैं संभाल लूंगा। दूसरे दिन फाँसी के सामने खड़े दोनों व्यक्ति मरने के लिए पहल करने लगे। इससे चकित होकर सम्राट ने जब कारण पूछा तो बुद्धिमान ने कहा-मैं जहां मरूँगा, वहां दुष्काल पड़ेगा और यह जहाँ मरेगा, वहां रोग फैलेगा। इसीलिए हमारे राजा ने हमें
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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