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________________ २५. सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ धर्मप्रेमी बन्धुओ! कल मैंने तेईसवें जीवनसूत्र पर विवेचन किया था, आज उसी जीवनसूत्र के अन्य पहलुओं पर विवेचन करना चाहता हूँ, आकि आप महर्षि गौतम द्वारा उक्त उस जीवनसूत्र को भलीभाँति समझ सकें। महर्षि गतिम ने कहा-- "बुद्धि अचण्ड भगा विणीयं" ___जो अचण्ड (सौम्य क्रोधादि आवेश से रहित) और विनीत होता है, उसे ही स्थिर बुद्धि प्राप्त होती है। सूक्ष्मबुद्धि और स्थूलबुद्धि लौकिक क्षेत्र हो या लोकोत्तर, दोनों ही क्षेत्रों में बुद्धि का परम महत्त्व माना गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा है “पना समिक्खए धम्मतांतत्तविणिच्चियं ।" "अनेक तथ्यों से विनिश्चित धर्मतत्त्वको प्रज्ञा (सद्-सद् विवेकशालिनी बुद्धि) से समीक्षा करे।" मैं आपसे पूछता हूँ कि धर्मतत्त्व या जिसी सूक्ष्म तत्व का निर्णय कौन-सी बुद्धि कर सकती है ? क्या स्थूलबुद्धि उसका यथारी निर्णय कर सकती है ? कदापि नहीं। सूक्ष्मबुद्धि ही प्रत्येक वस्तु का तलस्पर्शी निर्णय कर सकती है। इसीलिए जहाँ स्थूलबुद्धि वाले जिन प्रश्नों या समस्याओं का हल नहीं दे पाते, वे केवल सूक्ष्मबुद्धिशील पुरुषों की क्षमता एवं सफलताओं को देख-देखकर मन में संक्लेश पाते हैं, अथवा निर्रथक दौड़धूप करने का कष्ट पाते हैं, लेकिन वे अपनी उस अथक दौड़-धूप का सचा फल नहीं पाते। उसका सम्रा फल पाते हैं वे कुशाग्रबुद्धि–सूक्ष्मबुद्धि महानुभाव। जैसे भोजन को काफी देर तक चबाने का कष्ट तो दांत करते हैं। लेकिन जीभ तो सीधा ही निगल जाती है, स्वाद का आनन्द भी वही लेती है, दांत नों ले पाते। इसी बात को एक भारतीय विचारक कहते हैं
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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