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________________ ७२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ क्लिश्यन्ते केवल स्थूलाः सुधीस्तु फलमश्नुते । दन्ता दलन्ति कष्टेन, जिका गिलति लीलया। सूक्ष्मवुद्धि कैसा होता है ? इस सम्बंध में विलियम राल्फ इंगे (Wiliam Ralph Enge) कहता है -- "The wise man is he, who knows the relative values of things." "वास्तविक (सूक्ष्म) बुद्धिसम्पन्न वह व्यक्ति है, जो वस्तुओं के वास्तविक मूल्यों को जानता है।" स्थिरबुद्धि का महत्व क्यों ? प्रश्न होता है कि किसी व्यक्ति के पास परोपकार की या भलाई करने की सदबुद्धि तो है, किन्तु न उसके पास स्फुरणाशक्ति है, न लम्बी सूझबूझ है और न ही निर्णयशक्ति है, संकट आ पड़ने पर उसका समुचित हल निकालने की शक्ति नहीं है, तब क्या केवल तथाकथित सद्बुद्धि से उसका कार्य नहीं चल सकता ? क्या गौतम ऋषि के आशयानुसार उस व्यक्ति में केवल उक्त सद्बुद्धि का होना ही पर्याप्त नहीं है ? इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि कंवल उक्त सद्बुद्धि का होना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ स्थिरबुद्धि का कोना भी आवश्यक है। उसके बिना मानव-जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों, संकों, विनों, समस्याओं और विपत्तियों के समय केवल सुबुद्धिशील मानव धैर्यपूर्वक ठिका नहीं रह सकेगा, न धर्म-मर्यादा के अनुरूप सच्चा हल या निर्णय कर सकेगा, उसकी बुद्धि कुण्ठित हो जाएगी। स्थिरबुद्धि न होने पर मनुष्य ऊटपटाँग कार्य कर बैठेगा, समय पर सही निर्णय नहीं ले सकेगा, वह अपने कर्तव्य, धर्म और हित का निश्चय नही कर सकेगा, उसमें नई स्फूरणा एवं सूझबूझ नहीं होगी। सद्बुद्धि तो आज है, का को परिस्थितिवश, स्वार्थ भंग होते ही बदल भी सकती है लेकिन स्थिरबुद्धि अत्त तक टिकी रहेगी। वह प्रतिकूल परिस्थितियों, विकट प्रसंगों या संकटापन्न क्षर्णी में भी स्थिर रहेगी, समय आने पर जब कि व्यक्ति का जीवन संकट के बादलों से घिरा हो, आफतों की बिजलियाँ कड़क रही हों, उस समय अपनी सूझबूझ, बुद्धि और निर्णयशक्ति न होगी तो वह किसके पास निर्णय लेने भागेगा ? अपनी समस्याओं का निराकरण साधारणतया दूसरा व्यक्ति ठीक-ठीक नहीं कर पाता। इसीलिए एक भारतीय विचारक ने प्रभु से अपनी स्थिरबुद्धि के लिए प्रार्थना की है सपदि विलयमेतु राज्यलक्ष्मीरुपति पतन्त्वथवा कृपाणधाराः। अपहरतु शिरःकृतान्तो, मम तु मतिर्न मनागपैतु धर्मात् । 'मेरी राजलक्ष्मी चाहे शीघ्र ही नष्ट हो जाए अथवा मुझ पर चाहे असंख्य तलवारों की धाराएँ प्रहार करें, या मृत्यु मेरे सिर का अपहरण करके ले जाए, किन्तु मेरी बुद्धि धर्म से जरा-सी भी न हटे, धर्म में घिर रहे।" वास्तव में स्थिरबुद्धि के लिए जिन विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उनके
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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