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आनन्द प्रवचन : भाग ६
आदेश दिया है।" बीरबल तुरन्त विवाह-स्थान पर जा पहुंचा और विवाह के प्रमुख व्यवस्थापक को बुलाकर प्रत्येक बात नोट करने लगा। पौन घंटे के अन्दर पूरी फेहरिश्त तैयार करके अपनी जेब में रखकर बादशाह बेत समक्ष उपस्थित हुआ। इधर बेगम सोच रही थी कि बीरबल को भी अनेक सवाल पूछकर मैं भाई की तरह ५.१० चक्कर खिलाऊँगी। बीरबल ने बादशाह से कहा-"मजूर ! ये बाजे विवाह के उपलक्ष में बज रहे हैं। विवाह हिन्दुओं में अमुक जाति में है।''
बादशाह-"किसका है ?' बीरबल—'बेटी का है, हजूर !" बादशाह----'बारात कहाँ से आएगी ?' वीरबल-हजूर ! इलाहाबाद से आएगी।"
इस प्रकार एक-एक करके बादशाह ने ये सारे प्रश्न पूछ लिए, जो साले साहब ने पूछे थे और बीरबल ने सबका यथोचित उतार दिया। अब बादशाह ने बेगम से भी कहा—तू भी पूछ ले जो कुछ भी पूछना हो।" बेगम ने भी इधर-उधर के बहुत-से सवाल पूछे, पर बीरबल के पास सबके उत्तः मौजूद थे। आखिर बेगम पूछती-पूछती उकता गई। तब बीरबल ने अपनी ब से वह प्रश्नसूची निकाली और कहा—“जहाँपनाह ! आपने तो अभी तक थोड़ से प्रश्न पूछे हैं, मैं तो करीब १५० प्रश्नों के उत्तर लिखकर ले आया हूँ।" ।
बेगम को भी वीरबलकी इतनी तीक्ष्ण एवं विलक्षण बुद्धि का लोहा मानना पड़ा। अन में बादशाह ने कहा—'ऊँचे पद और वेतन बुद्धिमानी से मिलते हैं, केवल सम्बन्धी होने से ही मन्दबुद्धि, अयोग्य व्यक्ति को उच्च Pद या वेतन नहीं मिला करते।"
बेगम को अपनी हार माननी पड़ी।
बन्धओ ! मैं कह रहा था कि जिसकी बद्धि निर्मल एवं स्फरणाशक्ति एवं निर्णयशक्ति से युक्त होती है, वही व्यक्ति सप्तार में और आध्यात्मिक जगत में सम्मान पाता है। ऐसी स्थिरबुद्धि किसी विरले भाग्यशाली को ही मिलती है। ऐसी बुद्धि कोरे शारिरिक बल से प्राप्त नहीं होती। इसीलिए नीतिकार कहते हैं--
मतिरेव बलाद गरीयसी, यदभावे करिणामयं दशा। इति घोषयती डिण्डिमः,
करिणो हस्तिपकातः क्वणन् । अर्थात् --बुद्धि ही बल से बढ़कर है, जिसके अभाव में हाथियों की यह देशा है। हाथी के महावत द्वारा पीटा जाता हुआ नगाड़ामानो यही घोषणा करता है।
इसीलिए गौतम ऋषि ने प्रकारान्तर से स्थिरबुद्धि प्राप्त करने की प्रेरणा दी है। स्थिरबुद्धि क्या है और वह कैसे प्राप्त होती है ? अगले प्रवचन में इस पर विवेचन करूँगा।