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सौमन और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ ६३
परन्तु जहाँ काम, क्रोधादि प्रचण्ड विकणों के अंधड़ में मनुष्य वह जाता है, वहाँ सात्त्विक बुद्धि तो किनारा कर जाती है, उसकी जगह राजसी या तामसी बुद्धि आ जाती है, जो दूरगामी परिणामों पर सोचने के बजाय भौतिक पदार्थों के उपयोग या यंत्रों की अधीनता में सुख का अनुभव करती है, परन्तु उसके कारण क्षणिक सुख और फिर दुःख ही दुःख का सामना करना पड़ता है । पदार्थों की गुलामी और आसक्ति के कारण मनुष्य ईर्ष्या, द्वेष, दम्भ, पाखण्ड, स्वच्छन्दता और विलासिता आदि बुराइयों में जकड़ता चला गया। कहने को तो वर्तमान गानव बहुत ही चतुर एवं बुद्धिमान माना जाता है, पर उसकी बुद्धि सात्त्विक न होने के कारण वह दुःखी एवं अशान्त भी उतना ही है।
अमेरीका के एक द्वीप ( आईलैण्ड) के लोग अपने आपको सबसे ज्यादा बुद्धिशाली, सुसभ्य और सुसंस्कृत मानते हैं पर यहाँ के लोगों ने कामुकता को जीवन का सबके बड़ा सुख माना और उस पर नियंत्राप करने वाले सभी मर्यादाओं और बंधनों को तोड़ दिया । यहाँ के अधिकतर स्त्री-पुरुष निर्वस्त्र रहना पसन्द करते हैं। यौनाचार की कोई मर्यादा वे नहीं मानते। इस स्वच्छन्दः यौन प्रवृत्ति के कारण वहाँ अधिकांश पति-पत्नी का जीवन अविश्वसनीय, कलहयुका एवं परस्पर तलाक के कगार पर होता है । क्या आप इस जीवन को बुद्धि (सात्त्विक शुद्धि) से युक्त मानेंगे ? कदापि नहीं ।
तीन प्रकार की बुद्धि
यही कारण है कि भगवद्गीता में बुद्धि का विश्लेषण करते हुए तीन प्रकार की बुद्धियाँ बताई हैं - ( १ ) सात्त्विकी, (२) जनसी और (३) तामसी। इनका लक्षण गीताकार के शब्दों में देखिए
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कायोकार्ये भयाभये ।
बंध मोक्षं च या वेत्ति, बुद्धिः सा पार्थ ! सात्त्विकी । । ३० । ।
यया धर्ममधर्म च कार्यं वाकार्यमेव च ।
अयथावत् प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ ! राजसी । । ३१ । । अधर्मं धर्ममिति या मन्फो तमसावृता । सर्वार्थान् विपरीतांश्च, बुद्धिः सा पार्थ ! तामसी । । ३२ । ।
"जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्ति को, धर्म और अधर्म को, कर्तव्य- अकर्तव्य को, भय- अभय को एवं बन्ध और मोक्ष को तत्त्वतः जानती है, हे अर्जुन ! वह सात्त्विकी बुद्धि है।"
"जिस बुद्धि के द्वारा मनुष्य धर्म-अधर्म एवं कर्तव्य- अकर्तव्य को यथार्थ रूप से नहीं जानता, हे अर्जुन ! वह राजसी बुद्धि हैं। ""
" तमोगुण से आवृत्त जो बुद्धि अधर्म को धर्म मानती है, और सब पदार्थों को विपरीत समझती है, हे पार्थ! वह तामसी बुद्धि है। "