________________
६४
आनन्द प्रवचन : भाग ६
तामसी बुद्धि : सबसे निकृष्ट
तामसी बुद्धि का उदाहरण तो मैं अभी-अभी दे चुका हूँ। जो उलटी बुद्धि का व्यक्ति होता है, उसकी बुद्धि में कोई सच्ची स्फुरणा नहीं होती, उसे उलटी ही उलटी वातें सूझती हैं। ऐन समय पर उसकी बुद्धि ठप हो जाती है।
किसी नगर में एक सेठ रहता था। इसके घर में सभी तरह से आनन्द था, लेकिन उसकी गृहिणी अत्यन्त कुबुद्धि और कर्कशा थी। वह हर बात को उलटे रूप में लेती थी। सेठ जैसा कहता, उससे ठीक विपरीत वह करती थी। उसकी बुद्धि इतनी तामसी थी कि हर बात को वह उलटी ही समझती थी। सेठ उसकी इस कुबद्धि से हैरान था। उसे एक तरकीब सूझी। उसे अपनी पत्नी से जो भी काम करवाना होता, उसके बारे में वह इन्कार कर देता, जिसे वह अवश्य करती। जैसे घर में कुछ मेहमान
आ गए हों तो सेठ कहता-"देखो, इन मोभानों को कुछ नहीं खिलाना है, यों ही भूखे निकाल देना है।" इस पर विपरीत बुद्धिवाली सेठानी तपाक से कहती-"क्या अपनी इज्जत का कुछ ख्याल नहीं है ? आप घर आये मेहमान भूखे जाएँ, ऐसा नहीं हो सकता।" जब सेठ कहते—“मेहमानों को दाल-रोटी खिलानी है," तो बह कहती-"मेहमान कब-कब आते हैं ? आजा तो मैं उनको हलवा खिलाऊँगी।" इस तरह सेठ ने कुबुद्धि सेठानी से काम लेने का तीका आजमा रखा था।
एक बार नदी में बाढ़ आ गई थी। इजारों आदमी नदी के किनारे देखने के लिए जमा हो रहे थे। सेठ के मुंह से सहजा ही निकल गया—'देखो ! आज नदी में भयंकर बाढ़ आई हुई है, तुम उस तरह देखने मत जाना ।" पर विपरीत बुद्धि सेठानी कद मानने वाली थी। कहने लगी-"मुझे क्या डर है बाढ का ? मैं तो अवश्य जाऊँगी।" सेठ बोला--"अच्छे कपड़े-गहने आदि पहनकर बच्चों को लेकर जाना।" परन्तु उसने सभी गहने और अच्छे कपड़े खोजकर रख दिये और पैदल अकेली चली। नदी के एकदम निकट जाकर खड़ी हो गई। लोगों ने कहा कि पानी का वेग तेज है, दूर हट जाओ। पर वह अधिकाधिक निकर जाने लगी। अन्ततः वह विपरीत बुद्धि सेठानी लोगों की हितकर बात को न मानकर पानी के प्रवाह की चपेट में आ गई और व्यर्थ ही अपने प्राण खो दिये।
यह है तामसिक बुद्धि का रूप। तामलो बुद्धि वाले लोग दुर्व्यसनों, आलस्य एवं दुरी सोहबत में फंसकर अपना अहित करते रहते हैं। राजसी बुद्धि : चंचल अहितकर
राजसी बुद्धि तेज तो बहुत होती हैं, लेकिन होती है क्रोध, अभिमान, आवेश आदि से भरी। राजसी बुद्धि वाला किसी कार्य को धर्म और कर्तव्यबुद्धि से नहीं करता, वह प्रायः अधर्मयुक्त कार्य करता है। राजसी बुद्धि के सम्बन्ध में मैं राजा जयचन्द का उदाहरण प्रस्तुत कर चुका हूँ। ऐसे दुर्बुद्धि प्रेरित कार्य राजसी बुद्धि के होते हैं।