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आनन्द प्रवचन : भाग ६
जितनी आकांक्षा करता है, उसकी तुलना में उसे जितना कम मिला होता है, उतना ही वह दुःखी और असन्तुष्ट रहता है। असीम इच्छाएं कभी पूरी होती नहीं
संसार में किसी की सभी इच्छाएं या मनोकामनाएं कभी पूरी नहीं होती। इसका एक कारण तो यह है कि मनुष्य की इच्छाओ, वांछाओं या कामनाओं का कोई अन्त नहीं। जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा है
'इच्छाहु आगास समा अणतया।' इच्छाएं निश्चय ही आकाश के समान अनन्त, असीम हैं।
तालाब में पैदा होने वाली लहरों की करह इच्छाएं एक के बाद एक उत्पन्न होती रहती हैं। उनका कोई भी ओर-छोर नहीं है। फिर दूसरा कारण यह भी है कि मनुष्य की इच्छाओं का कोई एक स्वरूप स्थिर नहीं होता। उसका स्वरूप एवं प्रकार बदलता रहता है। उदाहरणार्थ, एक मनुष्य सन्तान हित है। वह सन्तान चाहता है। उसको सन्तान प्राप्त हो सकती है, होती भी है। पर इतने से उसकी मनोवांछा पूरी नहीं होती। वह और सन्तान चाहता है, वह नहीं मिलतः ॥ इसके पश्चात् और सन्तान न मिली तो न सही. किसी बच्चे को गोद लेकर अपनी सन्तान मान लेने की इच्छा हुई। वह भी पूर्ण होने आई, परन्तु वह सन्तान अपने मनोनुकूल न मिली तो फिर शिकायत रही।
स्वामी रामतीर्थ के पास न्यूयार्क की एक धनी महिला आई, और शोकार्त मुद्रा में घुटने टेककर स्वामी जी के समक्ष बैठ गई। उसके तीन पुत्र एक-एक करके मर गये थे। पुत्र शोक से विह्वल वह महिला स्वामीनी से परमानन्द का मंत्र मांगने आई थी। स्वामीजी ने निश्छल वाणी में कहा- “राम! तुम्हें आनन्द मंत्र देगा। पर इसके लिए तुम्हें उपयुक्त मूल्य भी चुकाना होगा।"
महिला की करुणाई आंखें चमक उठीं। वह बोली- "मेरे पास धन की कोई कमी नहीं। जो आपकी आज्ञा होगी, वह निरोधार्य होगी।" रामतीर्थ ने कहा--"राम के परमानन्दमय ऐश्वर्य में पार्थिव धन की नहीं, आत्मिक धन की जरूरत है।" महिला बोली-“आप कहिए तो।" स्वामीजी उरे और निकट में ही खेलते हुए एक हृष्ट-पुष्ट हब्शी बालक को लाए और महिला को मौंपते हुए कहा- "लो, इस बालक को अपना आत्मरस-वात्सल्यरस देकर इसका पालन-पोषण करो। इसे अपना पुत्र मानो, यह राम का आत्मीय है, यह तुम्हें परम आनना देगा।" महिला सुनकर काँप उठी, कहने लगी- "स्वामीजी ! यह कार्य मेरे से बिना बहुत कठिन है।" तब स्वामीजी ने कहा----"तो तुम्हें परमानन्द मिलना भी करिन है।
बन्धुओ ! इस अमेरिकन महिला वते सन्तान के रूप में बालक मिल रहा था, इससे उसकी सन्तानेच्छा पूरी हो जानी चाहिए थी। परन्तु उसकी इच्छा ने दूसरा मोड़ लिया। उसकी इच्छा हुई -"गोरी जाति का बालक मिले।" मान लो, कदाचित्