________________
४०
आनन्द प्रवचन : भाग ६
और कामनाएं बहुत विशाल होती है। वह वर्तमान के ही खाने-पीने, मौज-शौक एवं प्रवृत्ति करने तक में सन्तुष्ट नहीं होता। अपनी असीम इच्छा को लेकर उसकी प्यास चिरकाल के लिए पुत्रों और प्रपौत्रों के लिए संग्रह करके छोड़ जाने की होती है। यही अनियंत्रित कामना तृष्णा है, जो मनुष्य के जीवन में तरह-तरह की जटिलताएं, दुःख, अस्तव्यस्तताएं एवं परेशानियां बढ़ाती हैं। इस प्रकार कई पीढ़ियों तक के लिए संग्रह करके रख जाने से न तो आत्मकल्याण ही होता है, और न बच्चों का ही किसी प्रकार का विकास हो पाता है। बिना परिश्रम की कमाई से मनुष्य में अनेकों दुर्बलताएं आती हैं। उसमें विकास करने की योग्यता नष्ट हो जाती है।
यहाँ तक कि यह तृष्णा मरते समय भी नहीं जाती। इतने गहरे संस्कार तृष्णा के हों तब सुख-शान्ति कैसे हो सकती है ?
एक वृद्ध मनुष्य मरणासन्न था। उसके पीते ने उसकी शय्या के पास आकर पूछा--"दादाजी ! बताइए आपको क्या चाहिए?" मरने वालों को सब कुछ मांगने पर खाने की छूट दे दी जाती है। बकरे को बलिदान देने से पहले खूब खिला-पिलाकर मोटा ताजा किया जाता है। डाक्टर भी मरणासक रोगी को सबकुछ खाने पीने की छूट दे देता है।
दादाजी ने पोते के प्रश्न के उत्तर में कहा--"करोड़ रुपये की एक ध्वजा ला दो।" दादाजी की वित्ततृष्णा को देखकर पोते ने कहा- 'दादाजी ! आप परलोक जाने की बात कहते थे। मेरी यह सुई भी साथ में लेते जाना। ताकि पैर में कांटा गड़ जाये तो आप उसे निकाल सकें।" दादाजी बोले-"यह तो यहीं रहजाएगी।" लड़का बोला-" तो इसे आपके पैर में चुभो , ताकि वह आपके साथ परलोक में चली जाएगी।' दादाजी --" यह शरीर तो यहीं जलकर राख हो जाएगा, फिर मैं सुई कैसे साथ में ले जाऊंगा।' बालक ने कहा-" तो फिर आप करोड़ रुपये की ध्वजा कैसे साथ ले जाएँगे ?" बस, बालक की इस बात ने तृष्णा परायण बूढ़े की आँखें खोल दीं। अतः कुछ अर्से बाद अपने बड़े लड़के से परामर्श करके बूढ़े ने एक दानशाला खुलवाई—जो भी आता उसे वृद्ध प्रसन्नता से दान देता था। अभाव की पूर्ति भी सुख का कारण नहीं।
मनुष्य यह सोचता है कि अमुक अभाव की पूर्ति हो जाए तो मैं सुखी हो जाऊंगा। परन्तु अभाव की कमी सर्वथा पूर्तिी होगी नहीं और वह फिर दुखी होगा । वर्तमान परिस्थिति से असन्तुष्ट मनुष्य सदैव किसी न किसी अभाव का अनुभव करते हुए दुखी होते रहते हैं। वे अपने दुख का कारण किसी न किसी अभाव को मानते रहते हैं और ऐसा सोचा करते हैं कि यदि उनका वह अभाव मिट जाए, अमुक आवश्यकता पूरी हो जाए तो वे सुखी हो जाएगे। परन्तु ज्योंही वह एक अभाव पूरा होगा, दूसरा अभाव सताने लगेगा। दूसरा पर्ण होते ही तीसरा आ धमकेगा। इस