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आनन्द प्रवचन : भाग ६
सेठ ने कहा--" मैं सच कहता हूं। मेरा कोट पहनने से तुम सुखी न बने तो तुम्हें अविश्वास होगा। अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो ३-४ दिन मेरे यहाँ रहकर परीक्षा कर लो।" आगन्तुक रहने के लिए राजी हो गया। उसके भोजन आवास आदि की सब व्यवस्था सेठ ने कर दी। दूसरे दिन जब वह नित्यकृत्य से निवृत्त होकर सेठ के कार्यालय कक्ष में धुसने लगा जो जोर-जोर से झगड़ने के शब्द सुनाई दिये। आगन्तुक ने ध्यान से सुना, सेठानी मंठ पर बरस रही थी। सेठ समझा रहे धे-"अरी ! इतना हल्ला मत कर। बाह) मेहमान बैठा है, वह सुनेगा तो क्या समझेगा? पर सेठानी मनाने पर भी नहीं मान रही थी। फिर सेठ के रोने की आवाज सुनी तो आगन्तुक समझ गया कि सेठ अपनी पत्नी के कारण बहुत दुखी हैं। इसकी अपेक्षा तो मैं सुखी हूँ। मेरी पली मेरा कहना तो मानती है। अपना समाधान पाकर आगन्तुक चुपचाप वहां से चल दिया!
बह एक जमींदार के यहाँ पहुंचा। कहां भी इस सेठ की तरह ही जमींदार ने आगन्तुक से कहा। आगन्तुक वहां भी एक दिन रुका, परन्तु दूसरे ही दिन जमींदार की अपने लड़के के साथ झपट होती देखी। बाप कहता था-"तू शराब पीकर आवारा लड़कों के साथ घूमता है, यह मुझे अच्छा नहीं लगता। इस बुढ़ापे में मेरी इज्जत तू क्यों मिट्टी में मिला रहा है ?" लष्का कहता था--"यह मेरी इच्छा है, मैं जिन्दगी का आनन्द लूटूं। आपके कहने से मैं रुक नहीं सकता।" इस प्रकार जमींदार को अपने पुत्र के कारण दुःखी देखकर आगन्तुक वहाँ से भी चल दिया। वह पहुंचा एक दुकानदार के यहाँ, जहाँ ग्राहकों की भीड़ लगी थी, रुपये बरस रहे थे, जब भीड़ छंट गई तो आगंतुक ने दुकानदार से अपनी बात कही। परन्तु उसने भी कहा “मुझे धन तो बहुत मिलता है, परन्तु मैं न तो सुख से सो सकता हूं, न सुख से खा-पी सकता हूं। काम धंधे के मारे जरा भी अवकाश नहीं मिलता। नींद की गोली लेकर सोता हूं।" आगन्तुक वहां से भी चल पड़ा। फिर वह कई व्यक्तियों के पास गया उसे कोई भी सुखी नहीं मिला, जिससे कोट मांग सके।
आखिर एक पेड़ के नीचे बैठे एक गस्त फकीर को देखा तो दुखिया ने उससे पूछा-"महाराज ! आप बड़े सुखी मालूम हस्तेि हैं।"
फकीर ने शांत मुस्कराहट के साथ वहा-"अवश्य, मैं बहुत सुखी हूं, इसलिए कि मैं दूसरों को सुखी देखकर ईर्ष्या नहीं वरता, धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, सन्तान आदि की बिलकुल चाह नहीं है, मुझे जो कुछ खाने को मिल जाता है. उसी में सन्तोष मानकर परमात्मा का भजन करता हुआ मस्ती से जीवन बिताता हूं।"
आगन्तुक-"तो फिर अपना कोट मुझे दे दीजिए न?"
फकीर बोला- "मेरे पास तो सिर्फ यह लंगोटी है। सोलन ने तुम्हें सुख का रहस्य समझाने के लिए ही यह उपाय बताग है। सुख का मूलमंत्र यही है.--'हर-हाल में मस्त रहकर संतोषपूर्वक जीवन बिताओ।" आगन्तुक को सुख का मंत्र मिल गया।