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________________ सुख का मूल सन्तोष ३७ सुख का स्य : धनादि पदार्थों में सुख नहीं । मैंने एक पुस्तक में ग्रीस के प्रसिद्ध तत्त्वोवेन्तक सोलन के द्वारा बताया हुआ सच्चे सुख का रहस्य पढ़ा था । उससे आप लोग र्भ । भली-भांति समझ जाएंगे कि वास्तविक सुख धन, जमीन, सन्तान, स्त्री, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद या बंगला कोठी कार आदि होने से प्राप्त नहीं होता। यह निरा भ्रम है कि धन, वैभव और सत्ता आदि से सम्पन्न मनुष्य सुखी हैं। हां, तो सोलन के पास एक व्यक्ति आषा जो अपने आपको बहुत दुखी बताता था। उसने सोलन से कहा- "मैं बहुत दुखी हूं। बहुत देर से आपका नाम सुनकर आया हूँ कि आप सुख का मंत्र देते हैं जिससे आदमी सुखी हो जाता है। कृपया मुझे भी सुख का मंत्र दीजिए।" सोलन उसकी बात पर हंसा और कहने लगा- "मेरे पास ऐसा कोई भी मंत्र नहीं है, जिससे तुम सुखी हो जाओ।" आगन्तुक बोला- “आप टालमटूल न करें, मैं बहुत दूर से आया हूं तो मंत्र लेकर ही जाऊंगा।" सोलन ने सोचा- - अगर इसे तत्त्व - ज्ञान की बात कहूँगा तो यह समझेगा नहीं और कुछ त्याग, तपादि करने की बात कहूँग। तो यह अशक्य कहकर ठुकरा देगा । अतः यह अपने अन्तःस्फुरित चिन्तन से समझ सके ऐसा उपाय करना चाहिए ।' कुछ सोचकर सोलन ने आगन्तुक से कहा- "अच्छा, मंत्र तो मैं तब दूंगा, जब तुम किसी सुखी आदमी का कोट ले आओगे।" आगन्तुक ने कहा- "बस इतनी सी बात्र है, मैं अभी लाता हूं सुखी का कोट । एथेंस में बड़े-बड़े धनाढ्य जमींदार, व्यापारी हैं, उनसे कहने की देर है, वे कोट दे देंगे। " उसकी स्थूल दृष्टि में सुखी वह, जो सबसे अधिक धन, सत्ता, जमीन, व्यापार आदि में से किसी से सम्पन्न हो। वह दौड़ा-दौड़ा पहुंचा एथेंस नगर के एक प्रसिद्ध धनिक के यहां । द्वार पर खड़े आदमी से काम "अन्दर जाकर सेठ से कहो कि बाहर सोलन द्वारा भेजा गया एक आदमी आया है। आपसे मिलना चाहता है।" द्वारपाल ने सेठ से कहा तो उन्होंने कहा- 'आने दो उसे ।" उसने जाते ही कहा- "मुझे आपका धन-माल कुछ भी नहीं चाहिए, सिर्फ आपका एक कोट चाहिए।" सेठ विस्मयपूर्वक बोला- "कोट को भले ही एक के बदले दो-चार ले जाओ, पर यह तो बताओ कि मेरे कोट से तुम्हों क्या प्रयोजन है ?" वह बोला- मुझे सोलन ने बताया कि तुम किसी सुखी का कोट ले आओ, फिर मैं तुम्हें सुख का मंत्र दूंगा। मुझे आप जैसा सुखी मनुष्य एथेंस में बतई नहीं दीखता, इसलिए आपके यहाँ आया हूँ।" सेठ ने कहा- "भाई ! तुम मुझे सुखी मानते हो, पर मैं सुखी नहीं हूं।" आगन्तुक बोला- "आपको कोट न देना हो तो इन्कार कर दें। पर झूठ बोलकर टालमटूल न करें। आपके पास इतना धन-वैभव, सुख-साधन, नौकर-चौकर आदि हैं फिर भी आप अपने आपको दुखी बतात हैं. यही आश्चर्य है । "
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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