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________________ ३८६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ आनन्द प्रवचन देने अवश्य जाते हैं। परन्तु आज तो प्रायः इससे उलटा क्रम ही दृष्टिगोचर होता है। आज शिष्य बनने वाला प्रायः गुरु की खोज में नहीं जाता। गुरु बनने वाला ही प्रायः अपने शिष्यों की जमात बढ़ाने के लिए या अपनी या अपने संघाटक या सम्प्रदाय की महिमा एवं प्रभाव बढ़ाने के लिए शिष्यों की खोज में इध-उधर परिभ्रमण करते रहते हैं। मैं किसी व्यक्ति विशेष पर आक्षेप नहीं कर रहा हूँ, न किसी की निन्दा और आलोचना से मुझे प्रयोजन है। मैं तो वर्तमान में गुरु-शिष्य बन की जो वास्तविक परिस्थिति नजर आ रही है, उसी के बारे में संकेत कर रहा हूँ। कवल वस्तुस्थिति का दिग्दर्शन करना ही मेरा प्रयोजन है। हां, तो जब साधक में गुरु बनने की ख्वाहिश होती है, येन केन प्रकारेण शिष्यों को बढ़ाने और जैसे तैसे व्यक्तियों को मूंडकर चेले बनाने की चाह होती है, अथवा अनेक शिष्य मुंडकर अपना प्रभाव एवं महत्ता बढ़ाने की धुन सवार हो जाती है, तब कुशिष्यों के लिए प्रवेशद्वार खुल जाता है। शिष्यलोलुपता एक ऐसी बीमारी है कि फिर गुरुपदाभिलाषी प्रायः यह नहीं देखता कि आF वाला व्यक्ति कितनी उम्र का है ? कैसे खानदान व संस्कारों का है ? अपने गृहस्थ जीवन में उसका अपने परिवार एवं समाज से कैसा व्यवहार रहा है ? आध्यात्मिक राधना की उसमें कितनी योग्यता है ? शास्त्रीय या सैद्धान्तिक ज्ञान अथवा साधुता के विषय में उसका बोध कितना है ? उसका स्वभाव कैसा है ? इत्यादि। बहुत-से व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनता अपने परिवार वालों के साथ रात-दिन किसी-न-किसी बात पर झगड़ा चलता रहता है, वे परिवार में निकम्मे और निठल्ले बैठकर रोटियाँ तोड़ते रहते हैं, उनमें कुछ भी कार्य करने की योग्यता नहीं होती या वे किसी भी श्रमसाध्य कार्य को करना नहीं चाहले, कहीं भी जमकर नौकरी या व्यवसाय नहीं कर सकते, वे घर और परिवार से ऊो हुए या अपने उत्तरदायित्वों से भागकर अथवा अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करके आते हैं-साधु बनने के उम्मीदवार बनकर । ऐसे व्यक्ति न तो गृहस्थाश्रम में फिट होते हैं और न संन्यास आश्रम में ही। ऐसे व्यक्तियों को शिष्यलिप्सावश झटपट मूंड ने वाले गुरुनामधारी व्यक्ति ही प्रायः शिष्यों या अयोग्य शिष्यों को बढ़ाते हैं। उन्हीं को लक्ष्य में रखकर सन्त कबीर ने एक दोहे के द्वार चेतावनी दी है सिंहों के लेहंडे नहीं, सों की नहीं पात। लालों की नहीं बोरियाँ, रामधु न चलें जमात ।। इस कथन में किसी अंश तक सचाई है। दूरदर्शी गुरु द्वारा उम्मीदवार की परख जो दूरदर्शी गुरु होते हैं, वे अपने पास साधुपद के उम्मीदवार बनने वाले व्यक्ति की पूरी परख करते हैं, तभी आगे का कदम उठाते हैं। इस सम्बन्ध में महाराष्ट्र की
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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