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________________ कुशिष्यों को बहुत कहना भी विलाप ३८७ एक ऐतिहासिक घटना लीजिए लगभग दो सौ वर्ष पहले की बात है। महाराष्ट्र के एक गाँव के किनारे नदी बहती थी, जिसमें एक द्वीप था, जिसके दोनों और नदी की धारा बहती थी। उस छोटे-से द्वीप में कुटिया बनाकर 'संतोजी पदार नामक एक संत रहते थे। प्राकृतिक सौन्दर्यसम्पन्न होने से यह स्थान ध्यान-धारणाsि के लिए उपयुक्त था। संतोजी यहीं अपनी साधना करते थे। उस गाँव में एक गुस्सेबाज ब्राह्मण रहताथा, जो बात-बात में क्रोध से उत्तेजित हो उठता था। वह अपनी पत्नी को बहुत सतामा और छोटी छोटी बात पर क्रुद्ध होकर उसे मारपीट तक देता था। यदि वह कुछ वोली तो धमकाता- "तुमने सामने जवाब दिया तो मैं संतोजी पवार की तरह घर-बार छोड़कर साधु बन जाऊँगा।" बेचारी चुपचाप अत्याचार सहती थी। उसे यह डर था कि "कहीं यह घरबार छोड़कर चले गये तो मैं निराधार हो जाऊँगी।" दैवयोग से एक दिन संतोजी महाराज उसके यहाँ भिक्षार्थ आए। उसने रोते-रोते अपना दुखड़ा सुम्या और पूछा कि क्या करें? संतोजी महाराज ने कहा-एक बार जब तुम्हारा पति यह कहे कि मैं साधु बनता हूँ, तो तुम कह देना—'बहुत अच्छी का है, कल्याण ही होगा, साधु बनने से तो।' लेकिन फिर वह लौटकर आए तब घर में लेने से पूर्व उससे यह शर्त करवा लेना कि भविष्य में वह कभी ऐसी धमकी न दे। उनसे कैसी बात की जाए ? आदि बातें भी उन्होंने ठीक से समझा दीं। एक दिन उसका पति हमेशा की तरह गुस्मा हुआ, तब वह बहन शान्ति के साथ बोली- "इतनी छोटी-सी बात पर गुस्से क्यों होत हैं ?" इस पर वह क्रोध से आगबबूला होकर बोला— "तुम मुझे वापस जबाब देती हो ? इसीलिए तो शास्त्रों में नारी को 'नरक की खान' कहा है तथा संसार के विविध ताप में जलाने वाली भयंकर अग्नि भी ! बस, मैं ऐसे नरक में नहीं रहना चाहता। मैं संतोजी पवार के पास चला जाऊँगा और आत्मकल्याण करूँगा।" पली वोली—“यह तो बहुत अच्छी बात है। आपको सच्या वैराग्य हो गया हो तो इससे हमारे कुल का उद्धार ही होगा। आप मतोजी महाराज के पास जाइए। बे तो महान् संत हैं। उनकी संगति से हम सबका कल्याण होगा।" यह सुनकर तो ब्राह्मण एकदम उत्तेजित हो गया। संन्यासी बनने के लिए जनेऊ तोड़ना आवश्यक होता है, इसलिए वह अपना जनेऊ तोड़कर सीधा संतोजी के पास पहुँचा। संतोजी अपनी कुटिया में बैठे हुए थे। इसे आये देखकर पूछा- ''कहो भाई कैसे आए ?" वह बोला -.-.''महाराज! मुझे संसार से वैराग्य हो गया है। अतः अब घरचार छोड़कर आपकी सेवा में संत बनना चाहता हूँ।" संतोजी ने पूछा- "भाई ! तुम्हें वैराग्य करें हुआ ?" वह बोला--"महाराज !
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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