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________________ विक्षिप्तचित्त कोकहना : विलाप ३८३ विप्र झुंझलाकर बोला- "बेवकूफ ! इन बातों में तुमने क्या ग्रहण किया ? मैं जो बात कहता हूं, उसे धारण कर न।" विक्षिप्तचित्त वाला लड़का बोला-"को फिर वह कथा पुनः सुनाओ।" ब्राह्मण पूर्ववत् सुनाने लगा। दो घड़ी के पश्चात् उससे फिर वही प्रश्न किया तो वह बोला--"मैंने इस बार ग्रहण कर लिया।" -"क्या ग्रहण किया ?" —"यही कि तुम्हें कथा कहते कहते बहुत देर हो गई, गला दुखने आया होगा, अब कब बंद करोगे?" इस पर विप्र ने अफसोस करते हुए कहा-"ओफ ! मैंने व्यर्थ ही गला फाड़ा, इतना बड़बड़ाया।" इसी कारण महर्षि गौतम ने आध्यात्मिक और व्यावहारिक, सभी दृष्टियों से सोचकर इस जीवनसूत्र द्वारा चेतावनी दी है "विक्खित्तचित्ते केरहेए विलावो।' आप इस पर ध्यान दें और इसके रहस्य को हृदयंगम करें।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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