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________________ ३८२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ उक्त महिला ने सन्दूक खोली और खुशी-खुशी अपने बहुमूल्य आभूषण जोसे बेन को दे दिये। आभूषण हाथ में लिये बेन ने पूछा- "अभी-अभी एक दूसरा व्यक्ति आया था, आपने उसे आभूषण क्यों दे दिये ?" महिला छूटते ही बोली-"असभ्यों और मूों को भी कोई अच्छी वस्तु दी जाती है ?" इस पर तुरन्त ही रब्बी जोसे बोल पाई-"तब फिर परमात्मा ही अपनी अच्छी वस्तुएं कुपात्र को क्यों देने लगा?" महिला अपने प्रश्न का सन्तोषजनक उत्तर पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। सचमुच विक्षिप्तचित्त उपदेश या आत्मज्ञान के लिए कुपात्र होते हैं, उन्हें ये उत्कृष्ट वस्तुएं देना गटर में इत्र को ढोलना है । व्यवहार में भी विक्षिप्तचित्त को कोई बात नहीं कहता ___ व्यावहारिक-जगत में भी यह देखा जाता है कि पागल आदमी को कोई अच्छी बात नहीं कहता, न घर की किसी जिम्मेदांगो की बात उसे कही जाती है, व्यापार सम्बन्धी कोई भी बात उससे नहीं कही जामी, क्योंकि वह पागल है, उसका चित्त विक्षिप्त है, दिमाग अस्थिर है, वह किसी भी बात को ग्रहण करने, याद रखने और टिकाने लायक नहीं होता। इसी प्रकार जिम्का चित्तविक्षिप्त है, उसे भी कोई कथा, उपदेश या तत्त्वज्ञान की बात कहना बेकार का प्रलाप है, वह उसे बिलकुल ग्रहण नहीं करता। एक गांव में एक ब्राह्मण नया-नया अपा था। वह एक चबूतरे पर बैठकर कुछ भेंट-दक्षिणा पाने की आशा से कथा कहने लगा। एक दो श्रोतागण आ गए थे। ब्राह्मण को कथा कहते-कहते जब दो जड़ी हो गई, तब उसने श्रोताओं से पूछा- “बोलो, कुछ समझे ?" एक अन्यमनस्क-सा लड़का बैठा था, ग्रह बोला—“हां, समझ गये।" ब्राह्मण ने पूछा-'कहो तो क्या समा?" वह लड़का बोला-"तुम्हारी गर्दन हिल रही थी।" विप्र बोला-तूने यह क्या ग्रहण किया ? मैं जो कहता हूं, उसमें से कुछ ग्रहण कर।" वह बोला-'तो फिर दुबारा कथा कहो तो मैं कुछ ग्रहण करूं।" तब ब्राह्मण पुनः कथा कहने लगा। कहते कहते जब दोगड़ी हो गई तो ब्राहाण ने पूछा- 'बोलो कुछ ग्रहण किया ?" वह गंवार लड़का बोला-'मैंने ठीक ठीक गिनती कर ली, इस दर में से ७०० चीटियां निकलीं और ७०७ घुसी।"
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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