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परमार्च से अनभिज्ञ द्वारा कवन : विलाप पति बोला---"जैसे शरीर के साथ धात्मा का सम्पर्क होने से वह जलती है, जलने का अनुभव होता है, वैसे ही शरीर के साथ सम्पर्क होने से इसे भूख-प्यास भी लगती है, यह सुनती और सूंघती भी है, आहार भी करती है। सब प्रकार सुख-दुख का वेदन अनुभव भी करती है।"
इसीलिए मैंने कहा कि एकांगी और अधूरा ज्ञान दूसरों के सामने कहने और तदनुसार करने से कई खतरनाक समस्याएं दा हो जाती हैं। अनुभवहीन व्यक्ति उस एकांगी ज्ञान का दुरुपयोग करते हैं। वे आदशों की छाया में कई अनर्थ कर बैठते हैं। इसलिए यहां जैसे उस निश्चयनयवादी एकांपो अधकचरे ज्ञानी ने उस महिला को भी एकांगी निश्चयनय का पाठ पढ़ाया, साथ में व्यवहारनय का तत्त्व नहीं बताया, इसके कारण घर में गड़बड़शाला पैदा हो गई। वैम ही अन्य एकांगी ज्ञानियों से हो सकती
यह क्यों होता है ? इसका कारण है-अनुभूति की तीव्रता का अभाव । व्यक्ति सनता है, लेकिन अनुभूति में तीव्रता न आने से वह श्रवण कार्यकारी नहीं होता। अनुभूति की तीव्रता होने से तीन कारण प्रतीत होते हैं—पहला है—शब्द, दसरा है-अनमान, और तीसरा है प्रत्यक्षीकरण। शब्द से केवल वस्त की जानकारी होती है। जानकारी और अनुभूति में अन्तर है। शास्त्रों से जो सुनते हैं, उससे शाब्दिक ज्ञान होता है, अनुभव नहीं। 'चीनी' शब्द सुनते ही पहले उसकी जानकारी होती है, अनूभूति तो चीनी को खाने के बाद होती है |
अनुमान से भी शाब्दिक ज्ञान के साथ जुड़ने पर थोड़ी अनुभूति होती है, किन्तु उस अनुभूति में तीव्रता नहीं आती।
अनुभूति की पूरी तीव्रता प्रत्यक्षीकरण में होती है। आप कह देते हैं अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि आत्मा के विकास के लिए अच्छी बातें हैं। पर यह ज्ञान तो आपको शास्त्रों से हुआ है, अथवा भगवान या महापुरुषों ने कहा है, इसलिए हुआ है। आपने उनका जीवन में अनुभव नहीं किया- प्रत्यक्षीकरण नहीं किया, तब तक आपकी इन बातों के प्रति तीव्र अनुभूति नहीं कहलाएगी। आपने तो केवल पढ़कर या सुनकर केवल शाब्दिक या आनुमानिक ज्ञान के आधार पर ही कह दिया है कि ये बातें अच्छी हैं।
एक पण्डित ससुराल से घर आया त आते ही आंगन में बैठकर रोने लगा, लोगों ने रोने का कारण पूछा तो जोर-जोर से रोते हुए बोला- 'मेरी स्त्री विधवा हो गई।"
हितैषीजनों ने उसे समझाया कि "तुम तो जीवित बैठे हो, फिर तुम्हारी पत्नी कैसे विधवा हो गई ?"
उसने कहा- 'मेरी ससुराल में किसी कहा है, भला वह झूठ क्यों बोलेगा?" आज स्थिति ऐसी है कि अधिकांश हिंगक्षित और शास्त्रों को पढ़ने एव रटने