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________________ परमार्य से अभिज्ञ द्वारा कपन : विलाप ३५५ अज्ञानी ही पूर्वाग्रह के वश ज्ञानी बनने का दान करता है और दूसरों को धड़ल्ले से आध्यात्मिक ज्ञान देता है। वास्तव में पाश्चात्य विचरक राबर्ट हॉल (Roben Hall) के शब्दों में इसी तथ्य को अनावृत करूँ तो वह इस प्रकार होगा "Ignorance gives a sort of eternity to prejudice and perpetuity to error." 'अज्ञान पूर्वाग्रह को एक प्रकार की शातता और गलती को स्थायित्व प्रदान करता है।' केवल शास्त्रों को या जिनवाणी को घोंटन मात्र से ज्ञान नहीं आ जाता है, और न ही शास्त्रवचनों को दोहराने से ही ज्ञान आता है, वह तो विधिपूर्वक उनका अर्थ और रहस्य समझने से ही आता है। यथावान बिना कथन करना हास्यास्पद किसी भी सत्य को यथार्थरूप से समझने के बाद ही दूसरों के सामने प्रकाशित करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति हँसी का पात्र बन जाता है। एक रोचक उदाहरण लीजिए-- एक गाँव में एक मूर्ख आदमी रहता था, पर वह अपने आप को बहुत ही चतुर समझता था। बातें बनाने में बहुत ही कुशल था। भाग्यवश उसका विवाह एक संगीतज्ञ कन्या के साथ हुआ। वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गया। ससुराल में उसके साले भी संगीतज्ञ थे। उन्होंने विचार किया कि हम प्रातःकान पंचम राग में गायेंगे। उसकी पत्नी ने अपने भाइयों की बातचीत सुनकर अपने पति से कह दिया कि सबेरे मेरे भाई आपसे पूछे कि हमने किस राग में गाया तो आप कह देना- संचमराग में। सुबह होते ही उस मूर्ख के सालों ने गाना माया और अपने बहनोई से पूछा-" क्या आप कह सकते हैं, हमने अभी किस राग F गाया था।" उस मूर्ख ने तपाक से कहा-"अजी ! इसमें क्या पूछना है, वह पंचमा राग ही था।" यह सुनकर संगीतज्ञ सालों ने सोचा---इन्हें अपनी बातचीत का पता लग गया मालूम होता है। इसलिए गांव से बाहर जाकर सालों ने सोचा-हमें कल सुबह धन्याश्री राग में गाना है, इस बार बहनोई से पूछेगे तो कलई खुल जाएगी। अतः उन्होंने दूसरे दिन सुबह गाकर पूछा- "बताइए आज हमने कौन से राग में गाया?" मूर्ख ने उत्तर दिया—“यह तो छठा राग था?" उस पर सभी साले ठहाका मारकर परस्पर हंसने लगे। यह देखकर मूर्ख बोला--"अरे मूखों ! हंसते क्यों हो? कल तुमने पंचम राग में गाया था, इसलिए आज छठा राग ठीक ही तो था। क्योंकि पांच के बाद छह आता है, यह तो छोटा-सा बस्या भी जानता है।" यह सुनते ही उसके साले और मजाक करने लगे—'वाह, क्या कहना है आपकी बुद्धि-कमाल का।" उसकी पनों ने उसे धन्याश्री राग बताने के लिए धान्य की हंडिया बताई। उसे देखकर मूर्ख बोला- "हाँ-हाँ, मैं जान गया यह तोल्लड राग है।" इस पर उसके साले हंसी को रोक सके। इस प्रकार संगीत विद्या से
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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