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________________ ३५४ आनन्द प्रवचन भाग ६ लालबुझक्कड़जी ने कहा- "चलो, मैं देखता हूँ, ये निशान किसके हैं ?" सब ने लालबुझक्कड़जी को ले जाकर काफी दूर रुक वे हाथी के पदचिह्न दिखाए। पर लालबुझक्कड़जी ने भी कभी हाथी नहीं देखा था, फिर भी उनकी कल्पनाशक्ति बड़ी विलक्षण थी। वे दस-पन्द्रह मिनट कुछ सोचकर बोले - " अरे भोले लोगो ! तुम इतना भी नहीं जानते। रात को एक हिरन अपने पैर में चन्द्रमा को बाँधकर यहाँ आया था। उसी के ये निशान हैं, वह यहीं से होकर गया है।" सबने कहा--" वाह लालबुझक्कड़जी ! आपने ठीक ही कहा। पर यह तो बताइए कि इससे गाँव में कोई आफत तो नहीं आएगी ?" लालबुझक्कड़जी बोले – “हमारे गाँव में चन्द्रमा आया, यह तो शुभ चिह्न है । घबराओ मत, कोई आफत नहीं आएगी, हमें तो लगता है, जिसको आप शुभचिह्न कहते थे, उसी ने अशुभ कर दिया है।" अब जो लालबुझक्कड़जी बहुत झेंप गये और अपना सा मुँह लेकर चले गये। इसी प्रकार जो व्यक्ति किसी बात को सोचे-समझे या जाने बूझे बिना एकदम उस विषय में दूसरों को मार्गदर्शन देने या बताने लगते हैं, वे एक प्रकार से नई आफत मोल लेकर विलाप का-सा कार्य करते हैं। जब उनकी बात सही नहीं होती तब उनकी बात मानने वालों को उनकी बताई बात से विपरीत होते देखकर दुःख, शोक, संताप होता है, जो विलापतुल्य ही है। अपना अज्ञान स्पष्ट स्वीकारो इसलिए जो व्यक्ति जिस विषय से अनभिज्ञ है, वह उस बारे में टांग अड़ाकर अनाधिकार चेष्टा करता है। इस प्रकार की अनाधिकार चेश करने का परिणाम कई दफा बहुत भयंकर आता है। इसलिए समझवार व्यक्ति को यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि "मैं इस विषय में अनभिज्ञ हूँ।' एक बार ऋषि दयानन्दजी को कुष्ट छात्रों ने पूछा - "आप ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?" उन्होंने यथार्थ उत्तर दिया- मैं कुछ विषयों ज्ञानी हूँ, कुछ में अज्ञानी ।" छात्रों ने आश्चर्य से पूछा- यह कैसे ?" उन्होंने कहा- "मैं वेद, उपनिषद्, दर्शनशास्त्र आदि विषयों में ज्ञानी हूँ और भूगोल, खगोल, भौतिक विज्ञान आदि व्यावहारिक विषयों में अज्ञानी हूँ।" शेखशादी ने ठीक ही कहा है किसी विषय में अज्ञानी व्यक्ति के लिए चुप रहना बहुत अच्छा है, और वह अपने इस अज्ञान को जानता है, तो वह अज्ञान ही नहीं होगा। " अज्ञानी में प्रायः पूर्वाग्रह और अहंकार परन्तु मनुष्य का अहंकार इतना ! प्रबल होता है कि वह सूक्ष्म रूप से . किसी-न-किसी तरह प्रविष्ट होकर अज्ञात अज्ञान ही नहीं समझने देता। ऐसा
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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