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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ६ तीर्थ यात्रा का विचार कर ही रहे थे। एक फगह रहने से वे ऊब भी गये थे। अतः शीघ्र ही प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। बैलों को जोतकर रथ बाबाओं के सामने खड़ा कर दिया। सब बाबा बगीची चौकीदार को सौंपकर रथ में बैठ गये। सब ने गिन्नियों वाली नौली अपनी-अपनी कमर में बाँध ली। मार्ग में भयंकर जंगल आया, विषम और उन्नत पर्व श्रेणियाँ भी थीं। ठगों ने अवसर देखकर बाबाओं से कहा--"अब रास्ता पर्वतों की घाटियों में से होता हुआ बहुत घुमावदार है। यहाँ से एक पगडंशि सीधी उस गाँव को जाती है, जहाँ हमें आज रात को मुकाम करना है, किन्तु इस परमहंडी से रथ पार नहीं हो सकता। रथ को ६.१० कोस का चक्कर काटकर वहाँ जाना पड़ेगा, आप व्यर्थ ही हैरान हो जाएँगे अतः इस पगडंडी से चले जाइए, घण्टे भर में आप वहाँ पहुँच जायेंगे।" बाबाओं की समझ में बात आ गयी। वे रथ से उतर पड़े और ठगों की बताई हुई पगडंडी पर चलने लगे। ठगों ने उनसे कहा- "बाबाजी ! जोखिम वाली कोई वस्तु साथ में मत रखिएगा। जंगल का मामला है, कोई भी खतरा पैदा हो सकता है।" सभी बाबाओं ने अपनी-अपनी कमर में नौली खोलकर ठगों के कहे अनुसार रथ में रख दी। उनके मन में ठगों के प्रति पृष्ठा विश्वास जम चुका था। जो प्रतिदिन सबको एक-एक गिन्नी भेट देते हों, वहाँ धीखे का क्या काम ? सारा धन ठगों के कब्जे में आ गया। ___ चलते चलते उन धूतों ने फिर बाबों में कहा- "बाबाजी ! आप लोग संभलकर चलते रहिएगा। रास्ते में कई गुमराह करने काले व्यक्ति भी मिल सकते हैं, जो आपको बहकाएँगे कि यह पगडंडी नहीं है। आप किंधर जा रहे हैं, उधर खाई हैं, उसमें गिर पड़ेंगे; परन्तु आप उन धूर्तों की बात बिल्कुक न सुनें। आपको कोई बराबर आवाज दे तो कुछ पत्थर अपनी-अपनी झोली में भरक) रखिए, ताकि टोकने वाले को उन पत्थरों से मार भगाया जा सके, वे आपके पास ही न आ सकें।" यों वे ठग इन अंधे बाबाओं को गुमराह करके नौ दो ग्यारह हो गये। बेचारे अंधे लाठी के सहारे चल पड़े। कुछ आगे बढ़ने पर किसी हितैषी ग्बाले ने आवाज लगाई- “बाबाजी ! इधर आग लोग कहां जा रहे हैं ? यह रास्ता नहीं है आगे भयंकर खोह है, उसमें गिर पड़ेंगे। लहरें, आगे मत बढ़ें।" पर बाबाओं ने धूर्ता के सिखाये अनुसार उस हितैषी को धूर्त सशझकर अपनी झोली से तुरन्त पत्थर निकाले और उसकी तरफ फेंकने लगे। ज्यों-ज्यों उसने रोकना चाहा, त्यों-त्यों पत्थरों की बौछार करने लगे। बेचारा ग्वाला चुप होकर चला दिया। इसी तरह अनेक लोगों ने उन्हें उस रास्ते से जाने से मना किया, मगर बाबाओं ने किसी की नहीं सुनी। नतीजा यह हुआ कि आगे चलकर सभी अंधे बाबा एक गारे खड्डे में गिर पड़े और वहीं उनके प्राण पखेरू उड़ गये। सचमुच स्वार्थान्धों के द्वारा पकड़ाए हुए गलत रास्ते पर चलने वाले हिये के
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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