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________________ अरुचि बालेको परमार्थ-कथन : विलाप ३४१ और सम्यमिथ्यारुचि। महर्षि गौतम को यहाँ 'अरुचि' शब्द से 'सम्यक्रुचि का अभाव' अर्थ ही अभीष्ट है। सम्यक्रूचि वह है, जो सम्यग्दृषिसम्पन्न हो, जिसे जीव, अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान हो, उन तत्त्वों की यथार्थता का श्रद्धा हो। जो वीतरागप्रभु द्वारा उक्त वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखता हो, तथा शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, मिथ्यादृष्टिप्रसंसा एवं मिथ्यात्वी संसर्ग आदि दोषों से दूर रहता है। सम्यक्रुचि के भी दस भेद उत्तराध्ययन एवं स्थानांगसूत्र में सम्यग्दान के सन्दर्भ में दस प्रकार की रुचियाँ बताई गई हैं णिसग्गुवएसई, आणाका सुत्तबीयरुईमेव । अभिगम वित्थारआई, किम्पिा-संखेव-धम्मरुई।। सरागसम्यग्दर्शन के दस प्रकार ये हैं--- (१) निसर्गरुचि नैसर्गिक सम्यग्दर्शन (२) उपदेशरुचि-उपदेशजनित सम्यग्दर्शन, (३) आज्ञारुचि –वीतराग द्वारा प्रतिशोदित सिद्धान्त से उत्पत्र सम्यग्दर्शन, - (४) सूत्ररुचि-सूत्र ग्रन्थों को पढ़ने से उत्पन्न सम्यग्दर्शन, (५) बीचरुचि सत्य के एक अंश के सहारे अनेक अंशों में फैलेने वाला सम्यग्दर्शन, (६) अभिगमरुचि-विशाल ज्ञानराशि के आशय को समझने पर प्राप्त होने वाला सम्यग्दर्शन, (७) विस्ताररुचि-प्रमाण और नय के विविध अंगों के बोध से उत्पन्न होने वाला सम्यग्दर्शन, (८) क्रियारुचि-क्रियाविषयक सम्यग्दर्शन, (E) संक्षेपरुचि मिथ्या आग्रह के अभाव में स्वल्पज्ञानजनित सम्यग्दर्शन, (१०) धर्मरुचि धर्मविषयक सम्यग्दर्शन।' इस प्रकार यहाँ रुचि का अर्थ--तत्त्वार्थों के विषय में तन्मयता है। ये सम्यक्दर्शन सम्पन्न साधकों की विभिन्न रुचियाँ । सम्यग्दृष्टि इन १० में से किसी भी रुचि को लेकर सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं। रुचि के ये सब भेद सम्यक्रुचि के अन्तर्गत आ जाते हैं। रुधि के पहले बताये १ विशेष विवेचन के लिए उत्तराध्ययनसूत्र के अट्ठाईसवें अध्ययन की टीका देखिए । --सम्पादक
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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