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अरुचि वाले को परमार्थ-कथन : विलाप ३३६ अतिलोभ की वृत्ति नहीं होगी। उसे तत्त्वज्ञान के प्रति भी द्वेष, ईर्ष्या, असूया, विरोध या घृणा कतई न होगी वह तो समभावपूर्वक सम्यक्दृष्टि रखकर जहाँ से आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान मिलेगा, वहाँ से जिज्ञासा और नमसपूर्वक ग्रहण करेगा। यही सम्यक्रुचि प्रकट होने का लक्षण है।
ऐसी सम्यक्रुचि से सम्पन्न व्यक्तियों में जनक विदेही का उदाहरण दिया जा सकता है। याज्ञवल्क्य ऋषि की सभा में सहफानन्द, विरजानन्द आदि अनेक ऋषियों के होते हुए भी जब भी सम्यक्रुचि जनककिही नहीं आए, तब तक उन्होंने अपने अध्यात्मज्ञान का उपदेश प्रारम्भ नहीं किया। गर्वस्फीत ऋषियों को इस व्यवहार से अपना अपमान महसूस हुआ। वे मन ही मन याज्ञवल्क्य ऋषि के प्रति कुढ़ते ही रहे, लेकिन याज्ञवल्क्य ऋषि ने जनकजी के आने Pए ही प्रवचन प्रारम्भ किया। इसी बीच दैवी माया से एक घटना घटित हो गई। मिथिलानगरी तथा राजमहल अन्तःपुर आदि सब जलते हुए दिखाई दिये। सभा में जितने भी ऋषि थे, सब एक-एक करके अपनी अपनी झोंपड़ी में रखी हुई सामान्य सामग्री को बचाने हेतु उठकर चले गए, क्योंकि उनकी रुचि आध्यात्मिक ज्ञान में पक्की नहीं थी, वे भौतिक वस्तुओं के प्रति डांवाडोल होकर चले गए, मगर जनकविदेही याज्ञवल्क्य सूषि द्वारा कहे जाने पर भी अपने स्थान से नहीं उठे, क्योंकि उनकी रुचि भौतिक नहीं थी, पक्की आध्यात्मिक रुचि थी। कुछ ही देर में सब ऋषि लज्जित होते हुए सभा में वापिस लौटे। उन्हें अब ज्ञात हो गया कि हम सम्यक् (अध्यात्म) रुचि से कितने दूर है।।
सम्यक्रूचिसम्पन्न व्यक्ति कीपरख कैसे की जाए ? क्योंकि किसी व्यक्ति के मस्तक पर सम्यक्रुचि या मिथ्यारुचि का काई तिलक नहीं लगा होता। कई बार व्यक्ति अत्यन्त भक्तिभाव दिखाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए भी तत्त्वज्ञानी साधुओं के पास आता है। वह समझता है कि साधु के पास जाने से समाज में मेरी प्रतिष्ठा होगी, लोग मेरी प्रशंसा करेंगे, मुझे धमोत्मा पद मिल जायेगा, अथवा लोग मुझे धार्मिक समझकर व्यापार-धंधे में मेरा साझा डाक्त देंगे या नौकरी परख लेंगे अथवा कोई अन्य दुनियादारी का मतलब सिद्ध हो जाएगा।
आजकल असली के साथ-साथ नकली माल बहुत चल पड़ा है। असली मोती के बदले कल्चर मोती मिलते हैं जिनकी चमक असली मोतियों से ज्यादा होती है। इमीटेशन रोल्डगोल्ड या नकली सोने की चमक देखने पर आप सहसा जान नहीं सकेंगे कि यह यह असली सोना है या नकली ? अपनी दाँत की जगह नकली दाँत भी बनने लगे हैं. आदमी भी असली की जगह मशीन वत बनने लगा है, जो असली आदमी से ज्यादा और स्फूर्ति के साथ काम करता है। इसलिए इस प्रकार की शंका उठनी स्वाभाविक है कि असली रुचि और नकली रुति वाले की परख कैसे करें ? मेरी राय में नकली की परख अन्त में एक दिन हो ही जाती है। वह अधिक दिनों तक छिपा नहीं सकता। एक दृष्टान्त द्वारा इसे समझाने का प्रयल करता हूँ