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________________ ३३६ आनन्द प्रवचन भाग ६ "Interest makes some people bilnd, and others quicksighted " "रुचि कुछ व्यक्तियों को अन्धा बना देती है, और अन्य व्यक्तियों को ते दृष्टि चाले । " यह तो रुचिवान पर या रुचि जगाने वालों पर प्रायः निर्भर है कि वे रुचि को किस ओर घुमाते हैं। एक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट करना उचित होगा— एक गाँव में पं० शामलभद आये। वे प्रतिदिन भागवत्कथा करने लगे। भटजी की वाणी में बहुत ही माधुर्य और रसिकता थी, इसलिए श्रोतागण दिन-पर-दिन बरसाती नदी की भांति उमड़ने लगे। रात्रि में देर तक कथा चलती। लोग कथा समाप्ति पर भटजी की उपदेश शैली की प्रशंसा करके बिखर जाते। एक दिन कथा का समय हो गया था, लेकिन श्रोतागण सिर्फ २०-२५ ही आये थे। भटजी को आश्चर्य हुआ कि रोज तो सैकड़ों की संख्या में कथारतिक लोग आते थे, आज २०-२५ ही क्यों ? काफी समय तक प्रतीक्षा करने के बाद उन्होंने लोगों से पूछा- क्या आजगाँव में कोई उत्सव है या और कोई विशेष बात है ९ एक भावुक श्रोता ने कहा - "कृपानिधान ! उत्सव आदि तो कुछ नहीं है, परन्तु गाँव के उस चौराहे पर भवैये (नाटक मंडली वाले) आये हुए हैं, प्रायः ग्राम्य जनता उस ओर उमड़ पड़ी है। " उस रात को भटजी ने भागवत कथा ती की, लेकिन अनमने से होकर । कथा के बाद उन्हें रात भर नींद नहीं आई। सुबह होते ही भटजी नहा-धोकर सन्ध्या-पूजा करके भवैयों के डेरे पर जा पहुंचे। भवैयों ने भटजी का सत्कार किया। भटजी ने सीधी बात कही. "मेरी कथा में आजकल लोग आने बंद हो गये हैं, सभी तुम्हारे नाटक में आते हैं।" भवैयों का नेता बोला "भटजी ! यह तो जनता है, जिधर रुचि होती हैं, वहीं जाती है। " भटजी ने पूछा----"इस गाँव में कितने कि डेरा रहेगा तुम्हारी मण्डली का ?" भवैयों का नेता बोला---"क्यों भूखे मर रहे हैं क्या, भटजी ? दो दिन का सीधा (भोजन का सामान) यहाँ से ले जाना और तीसरे दिन भागवत की पोथी बाँधकर चल धरना । " शामल भट यह सुनकर एकदम क्षुब्ध अंतर खिन्न हो गए, परन्तु बोले कुछ नहीं । चुपचाप तेजी से पैर उठाकर अपने डेरे पर आ । भवैये भटजी को जाते देख ठहाका मारकर हँसने लगे। गाँव में भवैयों का नाटक जोर-शोर से चल पड़ा, सारा गाँव उसे देखने उमड़ता । इधर भटजी ने मन मसोसकर कथा बन्द कर दी। भागवत को वंदन करके बाँधकर ताक में रख दिया। थोड़े से अरुचिवास श्रोताओं को कथा सुनाने की उपेक्षा उन्होंने चुपचाप बैठकर मनन- चिन्तन करना उचित समझा। इतिहास के पन्ने
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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