SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२३ तैयार हो गया तो वहाँ उसने एक महोत्सव के आयोजन की घोषणा करवाई। उस महोत्सव में भाग लेने के लिए उन ४६६ रानिये और उनके समस्त पीहर वालों को भी आमंत्रित किया गया। खूब धूम-धाम से महोसव सम्पन्न हुआ। रात हुई। जब सभी निद्रामग्र हो गए, तब उस लाक्षागृह में चुपचाप आग लगवा दी गयी। देखते ही देखते वह महल धू-धू करके जलने लगा। उसमें समाई हुई ४६६ रानियाँ तथा उनके सभी पीहर वाले जलकर भस्म हो गये। देखिए, मोह और ईर्ष्या के प्रकोप का कितना भयंकर परिणाम आया। राजा सिंहसेन और सोमारानी ने इस रौद्रध्यान के पल्लस्वरूप बुद्धिभ्रष्ट होकर कितने भयंकर पापकर्म बांधे। यही हाल लोभ, मद, मत्सर, ईर्ष्या, आकार आदि मनोविकारों के कुपित होने का है। इन सबके कुपित होने पर बुद्धि भ्रट हो ही जाती है, जिसके कारण अपना और दूसरों का भी सर्वनाश हो जाता है। बन्धुओ ! इसीलिए गौतम महर्षि ने कुपित जीवन से सावधान करते हुए कहा ___ 'चएइ बुद्धी कुनिरा मणुस्सं ।' आप भी इन क्रोधादि मनोविकारों को बुतपत होने से बचाइए और अपना जीवन शान्त और स्वस्थ बनाइए।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy