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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२१ जिस व्यक्ति में वृद्धावस्था में काम-कुपित हो जाता है, उसका तो पूछना ही क्या ? वह अपनी तो दुर्गति करता ही है, अपनी पत्नी और सन्तान की भी दुर्गति करता है। तीब्र कामेच्छा मनुष्य को बलात् पतन की ओर छोंचती है। अगर व्यक्ति कामावेश में आकर तुरन्त उधर झुक जाता है तो उसे सर्वनाश की घड़ी देखनी पड़ती है। इसलिए कामुक विचार के आक्रमण होते ही तुरन्त निर्णय न लेना हितावह होता है। थोड़ी देर रुककर एकान्त में जाकर उस पर गहराई से विचार करना चाहिए। हिताहित का यथोचित विचार किये बिना ही कामवासना की ओर लुढ़क जाने से भयंकर हानि उठानी पड़ सकती है। अतः कामावेश से बचने का उपाय यही है कि काम की आक्रमक स्थिति को कुछ देर के लिए टाल दिया जाय। भारतीय संस्कृति के एक अमर गायक ने बहुत ही सुन्दर प्रेरणा दी है
कामक्रोधौ लोभमोहौ, दोड़े तिष्ठन्ति तस्कराः।
ज्ञानरत्नापहाराय, तस्माबाग्रत जाग्रत । मानव शरीर में काम, क्रोध, लोभ और गोह रूपी चोर उसके ज्ञानरत्न चुराने की फिराक में रहते हैं, इसलिए श्रेयार्थी को इनसे प्रतिक्षण जागृत रहना चाहिए।
मोह से कुपित होने पर यही दशा मोह से कुपित व्यक्ति की होती है। मोहाविष्ट व्यक्ति भी अपनी बुद्धि का दिवाला निकाल देता है। उसे भी अपने हिताहित का ध्यान नहीं रहता। रूपाली-बा के मोहान्ध पति का उदाहरण अगर सुन चुके हैं। उस मोहाविष्टता का कितना भयंकर परिणाम आया था, यह भी आप सुन चुके हैं। विपाकसूत्र में अंकित मोह-कुपित का एक ओर उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ---
सुप्रतिष्ठित नगर के राजा महासेन का इकलौता लाड़ला पुत्र था--सिंहसेन। योवनवय में आते ही उसका रूप, सौन्दर्य, देशसौष्ठव, बल, बुद्धि, पराक्रम देखने ही लायक था। चतुर राजकुमार सिंहसेन ने एक-दो नहीं, पांच सौ कन्याओं के साथ विवाह किया था। जहाँ-जहाँ वह रूपवती मुन्दरी को देखता, उसकी मांग उसके अभिभावकों के पास पहुंचा देता और उसके साथ पाणिग्रहण करता। वैभव-विलास और यौवन मद में छके हुए सिंहसेन को महा पवती चतुर सोमारानी सर्वाधिक प्रिय थी, उसे ही उसने अपनी पटरानी बना दिया था
सोमारानी के रेशम-से मुलायम गुच्छेदार नम्बे बालों पर गूंथी हुई फूलों की वेणी सिंहसेन देखता तो वह उसके अतिशय गौरवर्ण चांद-से मुख पर मुग्ध हो उठता। इसी कारण सौन्दर्यमूढ़ सिंहसेन का अपनी ४६६ पत्नियों पर आदर और स्नेह कम होने लगा। इस उपेक्षा के फलस्वरूप वे सब स्त्रियां प्रतिदिन विचार किया करती थीं, और मन ही मन ऊब जाती थीं कि अब हम क्या करें ? सोमारानी के प्रति उनके मन में सौतिया डाह पैदा हो गया। एक दिन सोमारती की खास दासी ने जब इन ४६६