________________
३१६
आनन्द प्रवचन भाग ६
एक भैंस लाना चाहता हूँ, ताकि हम सबको शुद्ध दूध-दही, घी आदि प्राप्त हो सकें। " पत्नी बोली - "बहुत अच्छी बात कही छापने । इस कार्य में देर न करें। आज से ही इस कार्य के लिए प्रयन करें। मैं शीघ्र ही अपने घर में भैंस देखना चाहती हूं।" गोवर्द्धन - "मेरा इरादा पक्का है, लेकिन उतावली में भैंस नही खरीदूंगा। अच्छी तरह देखभाल कर भैंस लाऊँगा । कोई ऐसे-वैसी भैंस घर में बँध गई तो फिर पश्चात्ताप करना पड़ेगा।"
पत्नी ने कहा- "परख तो अवश्य करें, लेकिन विलम्ब न करें। मेरी मां रुग्ण रहती है। वह इन दिनों काफी कमजोर हो गई है। वैद्यजी ने उसे मक्खन-मलाई खाने को कहा है। तो मक्खन- मलाई उसके भी काम आएंगे। मेरे छोटे भैया को भी दूध भेज दिया करूंगी।"
पति का पत्नी के प्रति प्रेम होता है, वह उसे खिला सकता है, लेकिन जब पत्नी ने अपनी माँ और भैया को दूध मलाई खिलाने की बात कही तो गोवर्द्धन सहन न कर सका। अतः उसका चेहरा आक्रोश से भर उठा। पति की बदली हुई मुखाकृति देखकर पत्नी ने पूछा - " मैंने तो कोई ऐसी-वैसी बात नहीं कही है, फिर आपका चेहरा क्यों बदल गया ?"
गोवर्द्धन "मेरा तो चेहरा ही बदला है, तेरा तो दिल-दिमाग बदल चुका है। इसीलिए तो आज बहकी-बहकी-सी बातें कर रही है।"
पत्नी ने गर्म होकर कहा--"हूँ। मेरे दिन दिमाग कैसे बदल गये ? क्या देखा आपने ?"
गोवर्द्धन को भी पत्नी के शब्द काटे-से चुभने लगे। वह गुस्से में तमतमाकर बोला- “कितनी बढ़िया बात कही है तूने ? भैंस खरीदकर लाऊंगा मैं, और मक्खन-मलाई खाएगी तेरी मां दूध पीएंगे तेरे किया ! यह कदापि नहीं हो सकता । " बात ही बात में दोनों में गर्मागर्म बहस होने लगी, बात बहस तक ही न रुकी दोनों हाथापाई और गाली-गलौच पर उतर आए। कवि ने ठिक ही कहा है---
मुख खुल जाता क्रोध में आँखें होती बन्द । रहता नहीं कुछ क्रोध में, जिन्तन से सम्बन्ध । मुख से चलती गालियाँ, जलते दोनों हाथ । क्रोध किया करता यहाँ, प्रान्तिघात उत्पात ।
हल्ला सुनकर पड़ोसी ने पता लगाया खीर उस बेबुनियाद लड़ाई का रहस्य मालूम पड़ा तो वह डंडा लेकर गोवर्द्धन के यहाँ आया। उसने घर में रखे मिट्टी के चार-पांच बर्तन फोड़ डाले। गोबर्द्धन चिल्लाया "अरे भाई ! ये बर्तन क्यों फोड़ डाले ?'
पड़ौसी बोला- "इसलिए कि तुम्हारी भैंस मेरा सारा खेत चर गई। भैंस के