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________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३१५ पति ने कहा-" यहाँ और कोई उपाय नहीं है, सिवाय पानी में होकर चलने के। महावर खराब हो जाए तो फिर लगा लेना।" लेकिन वह फैशनेबल पत्नी इसके लिए तैयार न हुई। कहने लगी- "मुझे साध में लाए हैं तो क्या मेरी इतनी-सी बात भी न मानेंगे। जैसे भी हो, आपको ऐसा उपाप करना होगा, जिससे महावर न छूटे।" बस, पली का इतना कहना था कि पोते का पारा चढ़ गया। उसकी भौहें तन गई, आँखें लाल हो गई। वह अपनी पत्नी से बोला-"हूँ, तेरे पैरों में लगे महावर का रंग नहीं छूटना चाहिए, और चाहे जो हो, मैं ऐसा ही उपाय करूँगा।" इतनी-सी बात कहकर उसने अपनी पली के दोनों पैर अपने हाथों से पकड़े और शीर्षासन करा दिया, सिर नीचे और पैर ऊपर । सिर नीचा होने से उसके मुंह एवं नाक में पानी भरने लगा। वह घसीटता हुआ अपनी पत्नी को नदी के दूसरे किनारे पर ले गया। नदी पार क्या की, पत्नी को ही उसने पार कर दिया। नाव मुंह में पानी भर जाने से उसका दम घुट गया, वहीं दम तोड़ दिया उसने। नदी के दूसरे तट पर पहुंचने पर लोगों ने उस क्रोधाविष्ट पति से कहा-"मूर्ख ! यह क्या गजब कर डाला ? नारी हत्या !" उसने कहा-''मैंने तो अपनी पत्नी की इच्छा पूरी की है। प्राण भले ही चले गये, उसके महावर का रंग तो सही सलामत है।" वास्तव में ऐसे क्रोधाविष्ट, जिद्दी और झक्की मनुष्य जहाँ मिल जाते हैं, वहाँ जीवन का सर्वनाश निश्चित है। वह वर्षों की बनी वनाई बात को क्षणभर में बिगाड़ देते हैं। बहुत-से दुकानदारों की दुकान केवल। इसलिए नही चलती कि उनका स्वभाव क्रोधी या चिड़चिड़ा होता है। वे अपने ग्राहकों से बात-बात में झगड़ बैठते हैं, गालियाँ दे बैठते हैं या उन्हें मार बैठते हैं। क्रोधावेश पर संयम न होने के कराण बहुत-से लोगों का जीवन बुढ़ापे में अत्यन्त कष्टमय हो जाता है। वे क्रोधावेश में आकर अपनी जबान और मिजाज को काबू में नहीं रख सकते। जब जो मुंह में आता है, वही कह देते हैं। इस प्रकार बौद्धिक क्षीणता के कारण वे तो स्वयं किसी के साथ प्रसन्नता से रह सकते हैं और न ही किसी के साथ काम कर सकते हैं। क्रोमाविष्ट होना कार्यसिद्धि में पहला विघ्न नीतिवाक्यामृत में स्पष्ट कहा है-- ___ 'उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु। सिद्धीनां प्रथमोऽन्तरायः' 'गर्म हो जाना, सभी कार्यों की सिद्धि में पहला विघ्न है।" आज अधिकांश लोग कार्य प्रारम्भ टतरने से पहले ही गर्म हो जाते हैं, कई लोग तो बिना मतलब के गर्म हो जाते हैं, जिससे उनका काम भी नहीं बनता और लोगों में भी वे हंसी के पात्र बनते हैं। बाद मे तो वे भी अपनी भूल पर बहुत ही लज्जित होते मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि गोवरून ने एक दिन अपनी पत्नी से कहा-"मैं
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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