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बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३०७ को तत्पर हो जाता है, उसके सारे ही कार्य अविवेक और अदूरदर्शिता से होते हैं।
तनिक-सी बात पर गुस्से से उत्तेजित हो जाना, मानसिक सन्तुलन खो देना, आवेश में भर जाना, मन मस्तिष्क का बुखार नहीं है तो क्या है ? इस मस्तिष्कीय ज्वर में मनुष्य उन्मत्त-सा हो जाता है, न बोलने मग्य वाणी बोलता है; उसकी वाणी में कटुता, व्यंग्य, तिरस्कार, अशिष्टता, अभद्रता आदि न जाने कितने ही विष घुले रहते हैं। जिस प्रकार शारीरिक ज्वर आने पर शरीग का सारा कार्यक्रम लड़खड़ा जाता है, उसी प्रकार दिमागी बुखार आने पर क्रोधावेशप में मनुष्य की विचार एवं निर्णय की शक्तियाँ अस्तव्यस्त हो जाती हैं। उस स्थिति F कोई भी सही निर्णय नहीं ले सकता। वस्तुतः उद्वेग मनुष्य की बुद्धि को अनिश्चय के दलदल में फंसा देता है। इस मस्तिष्कजनित उन्माद-आवेश के कारण मनुष्या प्रायः न करने योग कार्य कर बैठता है, जिसके लिए बाद में उसे जिंदगी भर तक पश्चाताप करना पड़ता है ?
एक प्राचीन उदाहरण लीजिए.--एक रमा एक बार घोड़े पर चढ़कर सैर करने के लिए निकला। घोड़ा उलटी लगान का था, इसलिए ज्यों-ज्यों वह उसे रोकने के लिए लगाम खींचता, त्यों-त्यों घोड़ा अधिकाधिक तेजी से दौड़ता था। किसी भी तरह वह रुका नहीं। राजा को वह एक भयंकर जंगल में ले पहुँचा। राजा थक गया। उसने घोड़े की लगाम छोड़ दी, तब घोड़ा खड़ा रहा। भूखा प्यासा राजा एक विशाल छायादार वृक्ष के नीचे बैठा। वह विश्राम कर हा था, उसी समय उसकी दृष्टि वृक्ष के . खोखले से गिरते हुए पानी पर पड़ी। उसने पत्तों का एक दोना बनाकर उस खोखले के नीचे रख दिया। थोड़ी ही देर में जव राजा ज्स दोने को लेकर पानी पीने को तैयार हुआ कि उस वृक्ष पर बैठे हुए एक पक्षी ने झपट्टा मारकर राजा के हाथ में रखा पानी का दोना नीचे गिरा दिया। उस उपकारी पक्षों ने राजा के हाथ से पानी का दोना इसलिए गिरा दिया था कि वह पानी नहीं था, किन्तु उस वृक्ष के कोटर में बैठे हुए एक अजगर के मुँह से गिरता हुआ विष था। उसने सोचा कि अगर अनेक लोगों का आधार राजा इसे पी लेगा तो तुरंत मरणशरण होजाएगा। परन्तु राजा इस बात को नहीं जान सका। उसने दूसरी बार उस दोने ती कोटर के नीचे लगाया और ज्यों ही दोने का पानी पीने लगा, उस पक्षी ने फिर झपश मारकर गिरा दिया, तब राजा तीसरी यार भी दोना भरकर पीने को तैयार हुआ कि इस बार भी पक्षी ने उसे गिरा दिया। इस पर राजा उसपक्षी पर क्रोध से अत्यन्त आगबबूला हो गया और उसे जल पीने में विघ्नकर्ता एवं अकारण दुष्ट जानकर तलवार ने मार डाला।
कुछ ही देर बाद राजा की सेना वहाँ भजन एवं जल लेकर आ पहुँची। राजा ने भोजन किया और पानी पीकर स्वस्थ हुआ। । फेर अकस्मात् राजा की दृष्टि उस वृक्ष के कोटर पर पड़ी, उसने देखा कि वह पहले दोने में भरे हुए जिस पानी को पीना चाहता था, वह पानी नहीं, अजगर के मुख से निकलने वाला जर था। अगर मैं उसे