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________________ ३०८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ पी लेता तो अवश्य ही मर जाता। इसीलिए व्यारे पक्षी ने मुझ पर उपकार करके वह दोना गिरा दिया था। हाय ! मैं कितना अधम और कृतघ्न हूँ कि अकारण उपकारी, जीवनदाता पक्षी को मैंने मार डाला। अतः में महापाप का भागी हुआ। मेरी बुद्धि क्रोध के कारण भ्रष्ट हो गई। यों पश्चात्ताप वरते हुए राजा ने अपने उपकारी पक्षी के शरीर का चंदन की लकड़ियों से अग्निसंस्कार किया, और शोकमग्न होकर नगर पहुंचा। अगर राजा क्रोधाविष्ट न होता और विवेक तथा समझदारी से काम लेता तो उसे उस उपकारी पक्षी को मारने और बाद में पश्चात्ताप करने का मौका न मिलता। किन्तु राजा ने इस वास्तविकता को नहीं समजा, जिसका दुःखद परिणाम उसे भोगना पड़ा। इसी प्रकार लोग क्रोध में आकर अपनी बड़ी-बड़ी हानियाँ और बड़े-बड़े अपराध कर बैठते हैं। क्रोधावेश के दुःखद परिणाम आप किसी जेलखाने में बन्द कैदियों से बात करें तो उनमें से बहुत-से कैदी आपको पश्चात्ताप करते हुए मिलेंगे। वे कहेंग-हमने अमुक अवसर पर समझदारी से काम नहीं लिया, एक आदमी से लड़ बैठे, गुस्से में आकर अमुक की हत्या कर बैठे, जिसका हमें इस समय यह परिणाम भोगना पड़ रहा है। मिजाज की यह गर्मी तो शायद एक मिनट की भी नहीं होती, पर उसका परिणाम महीनों ही नहीं, बल्कि वर्षों तक भोगना पड़ता है। फिर इसका कोई प्रतीकार सही नहीं हो सकता, सिर्फ पश्चात्ताप भर रह जाता है। कुछ वर्षों पूर्व एक सुशिक्षित युवक- ने जरा-सी कड़वी बात पर क्रोधावेश में आकर अपनी पत्नी तथा बच्चों को मौत के घाट उतार दिया, और स्वयं आत्महत्या करने के लिए रेल की पटरी पर लेट गया। वहाँ पुलिस ने उसकी हरकतें देखकर उसे बन्दी बना लिया। इस प्रकार वह अपनी शेष जिन्दगी रो-धो कर काटने लगा। कई व्यक्ति अपने कुटुम्ब की जरा-सी त्रुटि के कारण क्रोधाविष्ट होकर कभी-कभी आत्महत्या तथा दूसरों की हत्या कक कर बैठते हैं। जरा-सी प्रतिकूलता को सहन न कर सकने वाले आवेशग्रस्त, उत्तेजित, कुपित, अधीर और उतावले मनुष्य सदैब इसी तरह गलत सोचते और गलत काम करते हैं। मारपीट, गालीगलौज, लड़ाई-झगड़े, हाथापाई, कल्ल, क्रूरता, परस्पर वैमनस्य, किसी के कार्य में रोड़ा अटकाना, आत्महत्या आदि दुःखद कार्य उजना के वातावरण में ही बनते हैं। बहुत से व्यक्ति तो स्वकल्पित सन्देहों के आवेश में आकर भयंकर काण्ड कर बैठते हैं। कुछ समय पूर्व समाचार-पत्र में पढ़ा था, कि एक युवक ने अपनी पत्नी के आचरण पर शक हो जाने पर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी। समाचार-पत्रों में आए दिन इस
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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